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`चंद्रयान-२` की आंशिक सफलता और हमारी अवैज्ञानिक मानसिकता…!

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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भारत का मिशन चंद्रयान-२ कितना सफल रहा और कितना असफल,यह अभी ठीक से तय होना है,लेकिन इस पर हम किसी वैज्ञानिक और ठोस निष्कर्ष पर पहुंचें,उसके पहले ही देश में जिस तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं,उससे यही साबित हो रहा है कि, इसरो की उपलब्धि जो भी हो,हम भारतीय अपनी बुनियादी सोच में अवैज्ञानिक और मूर्खता की हद तक जज्बाती हैं। बेशक यह बेहद कठिन मिशन था और तमाम सावधानियों के बाद भी त्रुटि की संभावनाएं थीं, क्योंकि धरती पर बैठकर चाँद की चर्चा करना और असल में चाँद पर उतरने में धरती और चाँद का अंतर है। इस पूरे मिशन को लेकर जिस तरह हाइप बनाया गया और एक और ‘महाविजय’ से जोड़ने की प्रत्यक्ष और परोक्ष कोशिश की गई,उससे दुनिया में सही संदेश गया कि हम भारतीयों के लिए हर उपलब्धि और हर नाकामी एक तमाशा ही है। हम न तो इसके आगे सोचना चाहते हैं,न उसके पीछे कुछ जानना चाहते हैं और न ही उसके भीतर झांकना चाहते हैं। मिशन चंद्रयान-२ भारत के चाँद पर उतरने का महत्वाकांक्षी मिशन था,लेकिन वह अंतिम क्षणों में लक्ष्य से भटक गया। हालांकि,उम्मीद की एक हल्की किरण अभी बाकी है,पर इस आंशिक सफलता को भी जाने-अनजाने एक नाटक में बदलने की कोशिश हुई। इससे भी ज्यादा क्षुब्ध करने वाली सोशल मीडिया की प्रतिक्रियाएं थीं, जिसमें एक तरफ वैज्ञानिकों और प्रधानमंत्री मोदी का ‍अतिरेकपूर्ण महिमा मंडन था तो दूसरी तरफ इस महा मिशन में अंतिम क्षणों में हुई तकनीकी त्रुटि के लिए वैज्ञानिकों की कथित अधूरी तैयारी और मोदी को हर बात के लिए कोसने की कोशिशें थीं। दोनों पक्षों ने यही साबित किया कि चंद्रयान के लैंडर विक्रम से इसरो का संपर्क भले आखिरी क्षणों में टूटा हो,विवेकशीलता,संयम और सदबुद्धि से हमारा संपर्क बहुत पहले ही टूट गया है।

इस मिशन के चलते जो कुछ कहा गया और जो कुछ स्थापित करने की कोशिशें हुईं,वह किसी भी वैज्ञानिक सोच वाले समाज का परिचायक नहीं हैं। कई ऐसे सवाल उठे या उठाए गए,उससे लगा कि खुद हमें अपने पर ही भरोसा नहीं है। पहला सवाल तो इस दुर्लभ अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी का था। इसके पहले भी भारत के कई वैज्ञानिक मिशन सफल हुए हैं,लेकिन कभी किसी प्रधानमंत्री ने सम्बन्‍धित संस्थान में उस वक्त पर मौजूद रहकर वैज्ञानिकों की पीठ नहीं थपथपाई और न ही नाकामयाबी पर किसी को गले लगाकर सांत्वना दी। भारत ही क्यों,नासा जैसे विश्व के सर्वाधिक प्रतिष्ठित अंतरिक्ष शोध संस्थान द्वारा चाँद पर मनुष्य को उतारने के दौरान अमेरिका का कोई राष्ट्रपति हलो-हाय करने वहां नहीं गया था। हाँ,मिशन कामयाब होने पर राष्ट्रपति ने अपने वैज्ञानिकों को बधाई जरूर दी। भारत में भी केवल एक प्रकरण में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से अंतरिक्ष यान में बात कर उन्हें बधाई दी थी। बाकी जब हमने पहला उपग्रह आर्य भट्ट छोड़ा हो या बाद में एकसाथ कई उपग्रह छोड़ने की अति उन्नत तकनीक का सफल परीक्षण किया हो अथवा चंद्रयान-प्रथम मिशन हो, किसी पीएम या राष्ट्रपति ने वैज्ञानिक काम-काज के दौरान खुद उपस्थित रहने की न तो इच्छा जताई और न ऐसा करना जरूरी समझा,किन्तु प्रधानमंत्री मोदी नई परम्पराएं डालने और इस घटना को बड़ा कार्यक्रम बनाने में भरोसा रखते हैं,शायद इसीलिए वो खुद भी इसरो में चंद्रयान के चाँद पर उतरने के दुर्लभ क्षण के साक्षी बनते दिखना चाहते थे। किसी पीएम को ऐसा करना चाहिए या नहीं,इस पर बहस हो सकती है,लेकिन वैज्ञानिक तकाजा यही है कि चंद्रयान मिशन भी अंतत: एक वैज्ञानिक मिशन ही है,और उसे उसी वस्तुनिष्ठ भाव से चलने देना चाहिए। सदभाव के नाम पर ही सही,उसमें किसी तरह का कोई हस्तक्षेप अनावश्यक है, क्योंकि विज्ञान गुण-दोषों,गलतियों और संशोधन, अध्ययन-विश्लेषण से निष्कर्ष पर पहुंचने की प्रक्रिया और मानसिकता का नाम है। वैज्ञानिकों की सफलता अंतत: देश की सफलता,देश की सरकार की सफलता और देश के नेतृत्व की सफलता ही है। उसे अलग से ढोल बजाकर बताने की कोई आवश्यकता नहीं है।

चंद्रयान मिशन-२ अपना अंतिम लक्ष्य पाने में असफल रहा,यह बात खुद वैज्ञानिक मान रहे हैं,लेकिन इसके लिए मिशन की खामियों और वैज्ञानिकों की तैयारी और निष्ठा पर सवाल उठाना और भी शर्मनाक है। एक अखबार में छपी रिपोर्ट में यह बताया गया कि,मोदी जी को खुश करने के लिए मिशन चंद्रयान की तैयारियां जल्दबाजी में की गईं,जिसका नतीजा नाकामी में हुआ। इसकी गहराई से पड़ताल होनी चाहिए। यह स्थापित करने प्रयास भी हो रहा है कि,चंद्रयान मिशन भारत की वैज्ञानिक क्षमता का प्रदर्शन करने के बजाए मोदी और राष्ट्रवाद की ताकत जताने का एक खगोलीय तमाशा था। यह भी कहा गया कि,मिशन में गड़बड़ी होने पर इसरो प्रमुख के. शिवन का भावुक होना और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उन्हें हिम्मत बंधाना भी तयशुदा पटकथा का हिस्सा था,मानो चाँद पर चंद्रयान नहीं,खुद मोदी ही उतरने वाले थे।

दूसरी तरफ मिशन असफल होते ही,जितना हुआ उतने को भी भारत की महान उपलब्धि बताने का नया मिशन शुरू हो गया। बताने की पुरजोर कोशिश हुई कि लैंडर विक्रम का इसरो से अंतिम क्षणों में संपर्क भले टूट गया हो,लेकिन हमने आर्बिटर तो कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया,यानी भारत महानता की दिशा में कई सीढ़ी ऊपर चढ़ गया।‍ मिशन कोई भी हो,आजकल पाकिस्तान के बगैर उस पर किसी तरह की कोई चर्चा मायने नहीं रखती। कुछ टी.वी. चैनलों ने पाकिस्तान के एक मंत्री द्वारा हमारे चंद्रयान मिशन पर निहायत मूर्खतापूर्ण टिप्पणी को भी खूब दिखाया। इसी तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी की यह टिप्पणी कि-“मिशन चंद्रयान-२ केवल देश की आर्थिक मंदी से ध्यान हटाने की कोशिश है”,घटिया था,क्योंकि ऐसे मिशन बरसों की तैयारी का परिणाम होते हैं।

अब सवाल यह है कि,ऐसी अवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं और क्षुद्र स्वार्थों से प्रेरित बयानों के बीच वैज्ञानिक सोच क्या है और क्या होनी चाहिए ? पहली बात तो ऐसे मिशनों को राष्ट्र की प्रतिष्ठा और गौरव से जोड़ने का अभियान बंद होना चाहिए,क्योंकि कोई भी वैज्ञानिक मिशन कामयाब होगा तो वह देश के गौरव की पताका खुद लहराएगा। चंद्रयान-२ मिशन भी आंशिक रूप से ही असफल हुआ है। अगर लैंडर विक्रम से संपर्क नहीं हो पाया और रोवर प्रज्ञान चाँद की सतह पर चहलकदमी नहीं कर पाया तो भी आर्बिटर चंद्रयान चाँद के दक्षिणी ध्रुव के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां भेजता रहेगा। हो सकता है कि,इसमें कुछ जानकारियां ऐसी भी हों, जो मानव जाति के भविष्य में चाँद पर बसने की संभावनाओं को पुष्ट करें। इनमें चाँद पर पानी का पता लगाना भी शामिल है। चंद्रयान उतरने के वक्त इसरो में पीएम मोदी की मौजूदगी सही थी या नहीं,यह सवाल वैसा ही है कि,बेटी की विदाई के वक्त बाप को मौजूद रहना चाहिए या नहीं। इसके दोनों पहलू हो सकते हैं। फिर भी मिशन नाकाम होने पर मोदी ने देश के प्रधानमंत्री के रूप में वैज्ञानिकों की जो हौंसला-अफजाई की,उसे याद रखा जाएगा,क्योंकि नाकामी में हिस्सेदारी जताने के लिए भी हिम्मत चाहिए।

बहरहाल,वैज्ञानिक सोच यही कहती है कि चंद्रयान और (इस जैसे और मिशन भी)पूर्णत: वैज्ञानिक मिशन हैं। वो किसी एक राष्ट्र,एक दल,एक विचार या एक ‍व्यक्ति की दुकान सजाने के मिशन नहीं हैं,क्योंकि स्वयं विज्ञान भी उन अनुशासनों में से एक है,जिनके माध्यम से मानव सभ्यता सत्य की खोज में जुटी है। फर्क इतना है कि, आधुनिक‍ विज्ञान आँखन देखी और प्रामाणिकता में यकीन रखता है। वह गलतियों से सबक लेकर आगे बढ़ता है। अपने-आपको पुनरीक्षित,संशोधित करता है। यहां अंतिम सत्य जैसा कुछ नहीं होता। चंद्रयान मिशन भी इसी दिशा में एक अहम पायदान है।

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