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चुनावी मौसम

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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मौसम आया चुनावों का देखो,
सब दल जनता को लुभाते हैं
लोक लुभावन घोषणा-पत्र तो कभी,
विचित्र-सा स्वप्न डर दिखलाते हैं।

कुछ का बिगड़ा मिजाज है देखो,
मय-माया से ‘मत’ खरीदवाते हैं
सत्ता हो हासिल जैसे भी कैसे,
साम, दाम, दंड, भेद सभी अपनाते हैं।

धिक्कार है ऐसी जनता को जो,
अपना जमीर बेच के खाती है
किस्मत फोड़ के खुद ही अपनी,
क्यों कहती है ? सत्ताएं हमें सताती हैं।

तब थे देखो हुए तुम मदमाते,
अब सत्ताएं भी हुई मदमाती हैं
तुमने लूटा इनसे तब थोड़ा-थोड़ा,
अब सब ये तुमसे पूरा करवाती हैं।

देश की हो गई है देखो हालत पतली,
जनता-सत्ता अदला-बदली ही चुकाती है
कैसे सुधरेगी हालत देश की तब तक ?
जब तक जनता खुद ही न जाग जाती है।

है किसी भी दल के नेता के यहां,
नेक न देखो कोई भी इरादे
सत्ता को हथियाने के चलते सब,
करते हैं देखो हर वादे पे वादे।

यह रोग नहीं है मात्र ऊपर ही ऊपर,
इसकी गिरफ्त में है स्थानीय निकाय
इलाज एक ही दुरुस्त है इसका बस,
कि कैसे ना कैसे जनता जाग जाए।

सवाल एक ही चूहे-बिल्ली के खेल में,
बिल्ली के गले में घंटी कौन लटकाए ?
सबकी हो गई है फितरत एक-सी आज,
कैसे न कैसे जान बचे तो लाख उपाय।

देश की किसी को न चिंता है आज,
हसरत है, मेरा तुम्बा पहले भर जाए
फिर कोई जाति-धर्म मे बांटें हमको,
या फिर खुद ही अपना मत बिकवाए।

चुनावी मौसम है भाई हाथ मार लो,
फिर क्या मालूम फसल आए न आए ?
मतदान है महापुण्य दान ये इनको,
कौन समझाए ? कि इसे न बिकवाएं॥