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जड़ों की खोज में युवा पाकिस्तानी

राकेश सैन
जालंधर(पंजाब)
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लहू को लहू पुकार रहा है। हमारे पड़ौसी देश पाकिस्तान ने गौरी,गजनी,खिलजी,बाबर, औरंगजेब जैसे बर्बर नायक अपनी नस्लों को खूब घोंट-घोंट कर पिलाए,परंतु वहां की युवा पीढ़ी अपनी जड़ों से जुडऩे को बेताब दिख रही है। अभी-अभी लाहौर में महान शासक महाराजा रणजीतसिंह की प्रतिमा लगाने और उन्हें ‘शेर-ए-पंजाब’ की उपाधि देने के बाद सिंध प्रांत में राजा दाहिर को भी सरकारी तौर पर नायक घोषित करने की मांग ने जोर पकड़ लिया है। आधुनिक शिक्षा और सूचना तकनीकी से सज्जित युवा पाकिस्तान से पूछ रहा है हमारे नायक कौन हैं ? उक्त बर्बर आक्रांताओं से पहले हमारे इस इलाके का क्या इतिहास था ? अपनी जड़ों को तलाशती युवा पीढ़ी कट्टरवाद से ऊपर उठ अपना इतिहास जानने को न केवल लालायित,बल्कि उससे जुडऩे को भी बेताब दिखाई दे रही है। तभी तो लाहौर में महाराजा रणजीतसिंह की प्रतिमा की स्थापना के बाद सोशल मीडिया पर परस्पर बधाई दी जा रही है। बीबीसी लंदन की एक रिपोर्ट के अनुसार क्वेटा शहर के पत्रकार जावेद लंगाह ने फेसबुक पर लिखा है कि, आखिरकार राजा रणजीतसिंह बादशाही मस्जिद के दक्षिण पूर्व स्थित अपनी समाधि से निकलकर शाही किले के सामने घोड़े पर सवार होकर अपनी पिछली सल्तनत और राजधानी में फिर से हाजिर हो गए हैं। उन्होंने लिखा है कि पंजाब दशकों तक अपने असल इतिहास को झुठलाता रहा है,और एक ऐसा काल्पनिक इतिहास गढऩे की कोशिश में जुटा रहा जिसमें वो राजा पोरस और रणजीतसिंह समेत असली राष्ट्रीय नायकों और सैकड़ों किरदारों की जगह गौरी,गजनवी,सूरी और अब्दाली जैसे नए नायक बनाकर पेश करता रहा,जो पंजाब समेत पूरे उपमहाद्वीप का सीना चाक करके यहां के संसाधन लूटते रहे। दरम खान नाम के एक युवा ने फेसबुक पर लिखा कि अब वक्त आ गया है कि पाकिस्तान में बसने वाली तमाम कौमों के बच्चों को स्कूलों में सच बताया जाए,और उन्हें अरब और मुगल इतिहास की बजाय अपना खुद का इतिहास पढ़ाया जाए। केवल यही दो युवा नहीं,बल्कि इस तरह की प्रतिक्रिया देने वालों का तांता-सा लगा हुआ है। एक पाकिस्तानी पत्रकार निसार खोखर पंजाब की जनता को संबोधित करते हुए लिखते हैं कि अगर सिंध सरकार एक ऐसी ही प्रतिमा सिंधी शासक राजा दाहिर की लगा दे तो आपको ग़ुस्सा तो नहीं आएगा,कुफ्र और गद्दारी के फतवे तो जारी नहीं होंगे ? उक्त रिपोर्ट के अनुसार,सिंध की कला और संस्कृति को सुरक्षित रखने वाले संस्थान सिंध्यालॉजी के निदेशक डॉ.इसहाक समीजू भी राजा दाहिर को सिंध का राष्ट्रीय नायक करार दिए जाने की हिमायत करते हैं। सोशल मीडिया पर राजा दाहिर के पक्ष में अनेक पाकिस्तानी बुद्धिजीवी,पत्रकार व युवा उठ खड़े हुए हैं।
वैसे सिंधियों का कश्मीरी पंडित राजा दाहिर के प्यार कोई नया नहीं है। आम सिंधी दाहिर को अपना नायक मानता है न कि सिंध पर हमला करने वाले मोहम्मद बिन कासिम को। हालांकि,पाकिस्तान के इतिहास व पाठ्यपुस्तकों में कासिम को नायक बनाने के प्रयास हुए परंतु सिंधियों के राष्ट्रप्रेम के चलते यह अभी तक असफल ही रहे हैं। वरुण देवता के अवतार झूलेलाल आज भी सिंधी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं और सूफी परम्परा में उन्हें विशेष सम्मान हासिल है।
एक पाकिस्तानी नागरिक जीएम सैय्यद ने लिखा है कि हर एक सच्चे सिंधी को राजा दाहिर पर फख्र होना चाहिए,क्योंकि वो सिंध के लिए सिर का नजराना पेश करने वालों में से सबसे पहले हैं। राष्ट्रवादी विचारधारा के समर्थक इस विचार को सही करार देते हैं जबकि कुछ मोहम्मद बिन कासिम को अपना नायक और उद्धारक समझते हैं। इस वैचारिक बहस ने सिंध में दिन मनाने की भी बुनियाद डाली,जब धार्मिक रुझान रखने वालों ने मोहम्मद बिन कासिम दिवस मनाया और राष्ट्रवादियों ने राजा दाहिर दिवस मनाने का आगाज किया।
केवल महाराजा रणजीत सिंह व राजा दाहिर ही नहीं,बल्कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव-कुश द्वारा बसाए गए लाहौर,भरत के पुत्र तक्ष द्वारा बसाई तक्षशिला,स्वयंभू विश्वविजेता सिकंदर की सेना के दांत खट्टे करने वाले पोरस को लेकर भी पाकिस्तान की नई पीढ़ी में आकर्षण है। युवा जानना चाहते हैं कि १४ अगस्त १९४७ से पहले वे कौन थे,उनका देश कौन-सा था ? कासिम,बाबर,गजनी-गौरी बाहर से आए थे तो उनके अपने कौन थे ? उनकी रगों में किसका खून बह रहा है। लगता है कि मुस्लिम लीग की दो राष्ट्रों पर आधारित कृत्रिम इस्लामिक राष्ट्रीयता दम तोडऩे लगी है,और लहू को लहू पुकार रहा है। कहा भी गया है- ‘इक सूरत के कैसे हो सकते हैं दो बेगाने,आँखें पहचान रही थी अब तो दिल भी पहचाने।’ पाकिस्तान की नई पीढ़ी की सोच में आ रहे बदलाव का स्वागत होना चाहिए। जिस दिन पाकिस्तान की जनता अपनी जड़ों से जुड़ेगी उस दिन भारत-पाक की दूरियों व कटुताओं का स्वत: अंत हो जाएगा।

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