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जादुई संवेदनाओं को जगाता सशक्त माध्यम ‘दोस्ती’

ललित गर्ग

दिल्ली
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मित्रता हर रिश्ते में प्रेम, विश्वास एवं आत्मीयता का रस घोलती है। दोस्ती एक अनूठा एवं विलक्षण रिश्ता है, जिसमें हम बिना संकोच के अपनी वास्तविकता प्रकट कर देते हैं। यह रिश्ता कर्तव्यों, नियमों एवं बंधनों से मुक्त है। यह रिश्ता हमें स्वतंत्रता देता है, जिससे हम जैसे हैं, वैसे ही रह सकते हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण दुनियाभर में प्रत्येक वर्ष अगस्त माह में ‘अंतरराष्ट्रीय मैत्री (मित्रता) दिवस’ मनाया जाता है। इसके पीछे की भावना हर जगह एक ही है-मित्रता एवं दोस्ती का सम्मान। मैत्री का दर्शन बहुत विराट है, स्वस्थ निमित्तों की श्रृंखला में यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। बिना किसी आग्रह एवं स्वार्थ के जो मैत्री स्थापित करता है, वह सबके कल्याण का आकांक्षी रहता है, सबके अभ्युदय में स्वयं को देखता है और उसके जीवन में विकास के नए आयाम खुलते रहते हैं। इसमें अपने-पराए का भेद नहीं रहता, न प्रतिस्पर्धा और न छोटे-बड़े की सीमा-रेखा होती है। वास्तव में मित्र उसे ही कहा जाता है, जिसके मन में स्नेह की रसधार हो, स्वार्थ की जगह परमार्थ की भावना हो, ऐसे मित्र साँसों की बाँसुरी में सिमटे होते हैं, ऐसे मित्र संसार में बहुत दुर्लभ हैं। श्रीकृष्ण और सुदामा की, विभीषण और श्रीराम की दोस्ती इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं।

एक प्रश्न उभरता है कि, दोस्ती एवं मित्रता की इतनी आदर्श स्थिति व महत्ता होते हुए भी आज मनुष्य-मनुष्य के बीच मैत्री भाव का इतना अभाव क्यों है ? क्यों है इतना पारस्परिक दुराव ? क्यों है वैचारिक वैमनस्य ? क्यों मतभेद के साथ जनमता मनभेद ? ज्ञानी, विवेकी, समझदार होने के बाद भी आए दिन मनुष्य क्यों लड़ता- झगड़ता है। विवादों के बीच उलझा हुआ तनावग्रस्त क्यों खड़ा रहता है। न वह विवेक की आँख से देखता है, न तटस्थता और संतुलन के साथ सुनता है, न सापेक्षता से सोचता और निर्णय लेता है। यही वजह है कि, वैयक्तिक रचनात्मकता समाप्त हो रही है। पारिवारिक सहयोगिता और सहभागिता की भावनाएं टूट रही हैं। आदमी स्वकृत धारणाओं को पकड़े हुए शब्दों की कैद में स्वार्थों की जंजीरों की कड़ियाँ गिनता रह गया है। ऐसे समय में दोस्ती का बंधन रिश्तों में नयी ऊर्जा का संचार करता है। सूूरदास जी ने कहा है कि, “मित्रता का रिश्ता जीवन का सबसे मधुर रिश्ता होता है, जो जीवन में उत्कृष्टता का द्वार खोलता है।”
दोस्ती वह रिश्ता है, जो आप खुद तय करते हैं, जबकि बाकी सारे रिश्ते आपको बने-बनाए मिलते हैं। जरा सोचिए कि एक दिन अगर आप अपने दोस्तों से नहीं मिलते हैं, तो कितने बेचैन हो जाते हैं और मौका मिलते ही उसकी खैरियत जानने की कोशिश करते हैं। आप समझ सकते हैं कि, यह रिश्ता कितना खास है। जोसेफ फोर्ट न्यूटन ने कहा कि, “लोग इसलिए अकेले होते हैं क्योंकि वह मित्रता का पुल बनाने की बजाय दुश्मनी की दीवारें खड़ी कर लेते हैं।” हमें दोस्ती के नए मूल्य-मानक गढ़ने हैं, मित्रता को जीवन में सार्थक रूप में स्थापित करना है। मित्रता प्रेम का नहीं, बल्कि करुणा का पर्याय होनी चाहिए, क्योंकि प्रेम में स्वार्थ है, राग-द्वेष के संस्कार हैं जबकि करुणा परमार्थ का पर्याय बनती है।
आज जिस तकनीकी युग में हम जी रहे हैं, उसने लोगों को एक-दूसरे से काफी करीब ला दिया है, लेकिन इसी ने हमसे सुकून का वह समय छीन लिया है, जो हम आपस में बांट सकें। आज हमने पूरी दुनिया को तो मुट्ठी में कैद कर लिया है, लेकिन साथ ही हम खुद में इतने मशगूल हो गए हैं कि एक तरह से सारी दुनिया से कट से गए हैं।
दोस्ती के सुखद रिश्ते के ५ मूल मंत्र हैं-एक-दूसरे की कमियों और अच्छाइयों को स्वीकार करना। एक-दूसरे की भावनाओं को समझना और सम्मान करना। रिश्ते में हल्कापन और खुशी बनाए रखना। एक-दूसरे के प्रति विश्वास और ईमानदारी रखना। रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए समय और ध्यान देना। इन मत्रों को अपनाकर हम एक आदर्श दोस्ती स्थापित कर सकते हैं, क्योंकि दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है जो वार्तमानिक परिवेश में, जबकि संवेदनाओं एवं आपसी रिश्तों की जमीं सूखती जा रही है, एक-दूसरे से जुड़े रहकर जीवन को खुशहाल बनाने और दिल में जादुई संवेदनाओं को जगाने का सशक्त माध्यम है। क्षणिक और स्वार्थों पर टिकी मित्रता वास्तव में मित्रता नहीं, केवल पहचान मात्र होती है। ऐसे मित्र कभी-कभी बड़े खतरनाक भी हो जाते हैं, जिनके लिए एक विचारक ने लिखा है- ‘‘पहले हम कहते थे, हे प्रभु! हमें दुश्मनों से बचाना, परन्तु अब कहना पड़ता है, हे परमात्मा, हमें दोस्तों से बचाना।’’
मित्रता, दोस्ती को अभिशाप नहीं, वरदान बनाने का उपक्रम है। यह दिवस वैयक्तिक स्वार्थों को एक ओर रखकर औरों को सुख बांटने एवं दुःख बटोरने की मनोवृत्ति को विकसित करने का दुर्लभ अवसर प्रदत्त करता है। इस दिवस को मनाने का मूल हार्द यही है कि, दोस्ती में विचार-भेद और मत-भेद भले ही हों मगर मन-भेद नहीं होना चाहिए, क्योंकि विचार-भेद क्रांति लाता है जबकि मन-भेद विद्रोह।
आचार्य श्री तुलसी ने इसके लिए ७ सूत्रों का निर्देश किया-विश्वास, स्वार्थ-त्याग, अनासक्ति, सहिष्णुता, क्षमा, अभय, समन्वय। यह सप्तपदी साधना जीवन की सार्थकता एवं सफलता की पृष्ठभूमि है। विकास का दिशा-सूचक यंत्र है। दोस्ती की यही सरगम कभी कानों में जीवनराग बनकर घुलती है तो कहीं उठता है संशय का शोर। दोस्ती को मजबूत बनाता है हमारा संकल्प, हमारी जिजीविषा, हमारी संवेदना लेकिन उसके लिए चाहिए समर्पण एवं अपनत्व की गर्माहट। यह जीना सिखाता है, जीवन को रंग-बिरंगी शक्ल देता है। प्रेरणा देता है कि ऐसे जियो कि खुद के पार चले जाओ। ऐसा कर सके तो हर अहसास, हर कदम और हर लम्हा खूबसूरत होगा और साथ-साथ सुन्दर हो जाएगी जिन्दगी।

मित्रता दिवस, सभी गिले-शिकवे भूल दोस्ती के रिश्ते को विश्वास, अपनत्व एवं सौहार्द की डोर से मजबूत करने का दिन है।