सुरेश चन्द्र सर्वहारा
कोटा(राजस्थान)
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हिन्दी केवल नहीं हमारे
भावों की अभिव्यक्ति,
यह तो है जीवन की ऊर्जा
प्राणों की है शक्ति।
देती आई राष्ट्र-एक्य को
एक यही आधार,
भारत के भाषा-पुष्पों का
यही पिरोती हार।
एक सूत्र में जोड़ रही है
यह सारा ही देश,
इसको बोलें तो लगता है
महका-सा परिवेश।
हो आदर से भरा हमारा
हिन्दी के प्रति भाव,
ना दें अपने व्यवहारों से
हम हिन्दी को घाव।
पढ़ें-लिखें-बोलें हिन्दी में
हो हिन्दी का मान,
अखिल विश्व में हो गुंजारित
हिन्दी का जयगान॥
परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl