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जीवन व प्रेम के उतार-चढ़ाव का दर्पण ‘मेरी कहानी और शहनाज़’

सपना सी.पी. साहू ‘स्वप्निल’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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‘मेरी कहानी और शहनाज़’ प्रसिद्ध लेखक लियाकत मंसूरी द्वारा लिखित ऐसा उपन्यास है, जो पढ़ने पर पाठकों को शुरू से आखिरी तक बांधे रखता है। लेखक ने अपने उपन्यास के पात्र शहनाज़ के साथ जीवन जीते हुए, उससे वार्तालाप करते हुए ऐसी कहानियों का गुलदस्ता पाठकों को थमाया है, जिसमें पवित्र प्रेम से प्यार में पाप तक, मोहब्बत में मासूमियत से लेकर मोह के मकड़जाल, रिश्तों में भोली इंसानी भावनाओं से लेकर जीवन की जटिलताओं पर प्रकाश डाला है। श्री मंसूरी की कहानियाँ जीवन के आसपास घटित हुई-सी लगती है, क्योंकि यह उनके पत्रकारिता के पेशे के दौरान अपराध जगत में घटित सत्य घटनाओं से प्रभावित है, पर लेखक की अपनी एक उम्दा लेखन शैली है, जिसमें वे कहानियों को रोचक मोड़ देते हैं। कहानियाँ पढ़कर हम कह सकते हैं कि, वे अपनी लेखन शैली से प्रेमचंद जी की कहानियों जैसे घुमाव लाते हैं। सरल भाषा व संवाद-शैली का उपयोग कर वे पाठकों को कहानियों से जोड़ लेते हैं।
वैसे, इन कहानियों में प्रेमचंद जी की कहानियों से भिन्नता भी है कि, उनकी कहानियाँ अलग-अलग होती जाती है, पर लियाकत मंसूरी की कहानियाँ अलग होकर भी एक-दूजे से जुड़ी हुई-सी लगती हैं। शहनाज़ का पात्र और लेखक की उससे घनिष्ठता भी कहानियों में तारतम्य बनाए रखती है।
उपन्यास की सब कहानियाँ अंत में एक शिक्षा जरूर देती है, जिसमें पाठक स्वयं मानवीय अनुभव ग्रहण कर लेता है। ये कहानियाँ सरल तो हैं, पर मार्मिक और विचारोत्तेजक प्रतिबिम्ब दर्शाती हैं, जो इसे पढ़ने योग्य, रोचक और आकर्षक बनाती है। उत्सुकता बनी रहती है कि, आगे कहानी में क्या होगा या ऐसा होने की जगह, यह होता तो ठीक रहता।
पहली कहानी ‘बुंदु का कुत्ता जुम्मन की चिलम’ है, जिसमें एक कुत्ते द्वारा चिलम टूटने से २ परिवारों में जो रंजिश हुई, उसमें कई हत्याएं हुई, का उल्लेख है। ये कहानी ग्रामीण क्षेत्र की है, जिसमें देवर-भाभी के बीच अवैध संबंधों को जिस तरीके से दर्शाया गया है, वह बताता है कि, रिश्ते कैसे दरकते हैं। लेखक ने एक भ्रष्ट अधिकारी के चरित्र को इस कहानी में लिखा है कि, कैसे भ्रष्ट सब-इंस्पेक्टर अपने लालच में कई हत्याएं करवा देता है। भ्रष्ट दरोगा एक दिन अपने पुत्र के साथ सड़क दुर्घटना में मारा जाता है। हालांकि, अच्छे पुलिसकर्मी भी होते हैं, यह भी इस कहानी में बताया गया है। लेखक ने अंत में बताया है कि कैसे मजलूमों की हाय नहीं लेनी चाहिए।
दूसरी कहानी ‘क्योंकि सड़क नहीं बख्शती’ एक ऐसे युवक की दास्तां है, जो फौज में जाना जाता था, लेकिन मीडिया की चकाचौंध देख पत्रकार बन बैठा। हाथों में थामनी थी बंदूक, थाम ली कलम। लेखक ने इस कहानी में बताया है कि, कितने प्रकार के पत्रकार पाए जाते हैं। हर पत्रकार की अलग-अलग श्रेणी इस कहानी में दर्शायी गई है। ये कहानी अपराध जगत पर लिखने वाले एक पत्रकार की है। अपराध पत्रकारिता पर कैसी हनक सवार रहती है, जो बाद में महत्वपूर्ण शिक्षा देती है।
‘महजबीं’ बाल शोषण पर प्रहार करती कहानी है। बहुत बारीकी से लेखक ने बाल अपराध को इस कहानी में उठाया है। जो माता-पिता अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते, उन बच्चों का कैसे शोषण होता है, यही इसमें दर्शाया गया है। यह कहानी बहुत सुंदर गढ़ी गई है। इस पर फिल्म निर्माण भी संभव‌ है।
अगली कहानी ‘चीरहरण’ है जो एक ऐसी युवती की कहानी है, जिसका चरित्र शादी से पहले पाक था, लेकिन पति शराबी निकला तो उसके सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया। कहानी में दर्शाया गया है कि, एक माँ खुद भूखी रह सकती है, लेकिन बच्चों को भूखा नहीं देख सकती। एक बार कदम बहके, तो बहकते ही गए। प्रेमी के हाथों पति की हत्या करवा दी। ये कहानी पति, पत्नी और वो का ऐसा कॉकटेल है, जो बहुत कुछ सोचने-समझने पर विवश करता है। समाज को भी जागरूक करती है ये कहानी, कि पति-पत्नी के बीच जब तीसरे का प्रवेश होता है तो कैसे अपराध का जन्म होता है।
वहीं तीन तलाक पर कानून बन गया हो, लेकिन तलाक का अभिशाप अभी भी मुस्लिम महिलाओं का पीछा नहीं छोड़ रहा। छोटी-छोटी बातों पर तलाक दे देना गलत है, लेखक ने कैसे दंपत्ति को आपस में मिलाया और शरीयत का हवाला दिया, ये काबिले तारीफ है। लेखक ने इस कहानी में तलाक के आँकड़े, सरकार का पक्ष और अदालत का हवाला अपने शब्दों में बेहतरीन तरीके से नाप-तौल कर भी लिखा है।
इस उपन्यास की महत्वपूर्ण कहानी ‘कड़वाहट’ है, जो भले ही बड़ी है पर चकाचौंध की दुनिया के विषय पर सोचने को मजबूर कर देती है। कैसे नवयुवती के मॉडलिंग में एक पुरस्कार पाने के लिए कदम बहक जाते हैं, और वह अपराध के दल-दल में फंसती ही जाती है, ये इस कहानी में है। इस कहानी के कई आयाम को लेखक ने बताया है कि, जो माँ-बाप जवान बेटियों पर गौर नहीं करते, उन्हें आजादी देते हैं, तो फिर इस आजादी का कैसे युवा नाजायज फायदा उठाते हैं।
वहीं ‘मेरे नसीब में नहीं थी वो’, ‘दंगा’ भी बेहतरीन कहानी है। ‘मेरी कीमत’, ‘मिट्टी डाल दो’ मासूम प्रेम कहानियाँ है, तो ‘भटकती आत्माएं’ अंधविश्वास से भरी है। यह इशारा भी है कि, समाज में अब तक अंधविश्वास का चलन है, जिसमें साक्षर जन भी सोचने पर विवश हो जाते हैं कि, कहीं यह बीमारी सच में तो ऊपरी बाधा के कारण नहीं थी।
निबंधात्मक शैली में लिखे पूरे उपन्यास की कहानियों में प्यार और नुकसान तो है ही, प्यार की गहराई और उसे खोने का दर्द भी पता लगता है। यह रिश्तों की जटिलताओं और हमारे जीवन को आकार देने वाले मानवीय संबंधों पर प्रकाश डालते हुए पाठक को भावनात्मक यात्रा पर ले जाता है। यह कहानियाँ आत्म-खोज भी करवाती हैं, जिसमें शहनाज़ के चरित्र के माध्यम से लेखक आत्म-खोज और व्यक्तिगत विकास के विषयों पर भी दृष्टि डालते हैं। कहीं-कहीं पर काव्यात्मक भाषा शैली लेखक द्वारा लिखे संवादों को उच्च बनाती है, तो कहीं विचारोत्तेजक शैली इसे पढ़ने में सुंदर और अभिव्यंजक बनाती है।
उपन्यास में लघु कहानियों और निबंधों का समानान्तर संग्रह है, जो प्रेम, रिश्तों और मानवीय भावनाओं के विषयों का पता लगाता है। ‘मेरी कहानी और शहनाज़’ शीर्षक लेखक के जीवन को शहनाज़ के चरित्र के साथ जोड़ता है। पढ़ते-पढ़ते‌ बाद‌ में पता चलता है कि, शहनाज़ कौन है।
‘मेरी कहानी और शहनाज़’ उन लोगों के लिए एक दिलचस्प किताब है, जिन्होंने कभी प्यार और नुकसान की गहराइयों का अनुभव किया है। शीर्षक प्रभावी है, जो किसी भी व्यक्ति को पढ़ने के लिए प्रेरित करता है। मेरा मानना है कि, हर जीवन एक कहानी ही तो है और कहानियों को जानना, उनमें अपनी व अपनों की ज़िंदगी की कहानी से साम्यता बैठाना पाठकों को अच्छा लगता है और इस उपन्यास में भी जीवन और प्रेम के उतार-चढ़ाव का अनुभव होता है।

लियाकत मंसूरी अपने विचारोत्तेजक और भावनात्मक रूप से गूंजने वाले कार्यों के लिए जाने जाते हैं। एक वरिष्ठ पत्रकार, सहयोगी स्वभाव व अपनेपन का भाव इनकी मानवीय स्थिति भी दर्शाता है। इस उपन्यास को वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (उप्र के मथुरा स्थित जवाहरबाग कांड में शहीद एसपी सिटी, मथुरा) स्व. मुकुल द्विवेदी को समर्पित करना दर्शाता है कि, वह अपने सभी मिलने-जुलने वालों से हृदय से रिश्ते निभाते हैं। लेखक का यह उपन्यास पूर्व उपन्यासों से ज्यादा प्रसिद्ध हो, मेरी ओर से यही अनंत शुभकामनाएँ।