डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’
सोलन(हिमाचल प्रदेश)
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खुशी हमारे मन की भावना है, जो किसी कार्य विशेष करने या पूर्ण होने पर हमें महसूस होती है।जब कोई भी कार्य हमारे मन के अनुरुप होता है तो हम खुश हो जाते हैं और यदि आशा के विरुद्ध होता है तो हम स्वयं को दुखी महसूस करते हैं। किसी भी एक कार्य से सभी लोग खुश नहीं हो सकत, जैसे-एक गरीब के बच्चे को एक गुब्बारा बेचकर खुशी मिलती है। मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चे को जब खेलने के लिए गुब्बारा मिलता है तो वह खुश हो जाता है और धनी परिवार का बच्चा उसी गुब्बारे को फोड़ कर खुश होता है। तीनों परिस्थितियों में गुब्बारा एक ही है, मगर तीनों बच्चों को खुशी का एहसास होने का तरीका अलग है।
लोग खुशी को दुनिया भर में ढूंढते हैं जबकि खुशी तो हमारे दिल में रहती है। उसको निकालना, व्यक्त करना हमारे हाथ में है। खुशी को दुनिया का हर व्यक्ति प्राप्त करना चाहता है और हमेशा अपने पास रखना चाहता है। यदि हम अपनी सोच का नजरिया बदलेंगे तो हम हमेशा खुश रहेंगे। इस दुनिया में इंसान के लिए सबसे जरूरी है खुशमिजाज बनना, क्योंकि खुशी ही हमारे जीवन की बुनियाद है। अक्सर हम अपनी तुलना दूसरों से कर स्वयं ही दुखी हो जाते हैं। हमारे पास जो अभाव है, उसके लिए हम दुखी हो जाते हैं। हम आज एक संकल्प लें कि हम अपनी खुशियों की चाबी किसी को नहीं देंगे, अपने पास संभाल के रखेंगे। जो लोग हम पर ध्यान नहीं देते हैं या हमें परेशान करते हैं, उनसे हम दूर रहें। जो लोग हमें चाहते हैं, उनके साथ हम स्वयं समय बिताए।
जिंदगी बड़ी अजीब है, जिस रात हम दुखी होते हैं उस रात हमें नींद नहीं आती है, और जब हम खुश होते हैं तब हम खुद ही सोना नहीं चाहते।
यदि हमेशा खुश रहना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि खुशी हमें तब महसूस होगी, 6जब हम स्वस्थ होगें। यदि हम किसी बीमारी से ग्रसित होते हैं तो उस अस्वस्था में हम खुशी नहीं प्राप्त कर सकते।
जब हम खुश होते हैं तो स्वयं को ताकतवर समझते हैं और खुद को किसी भी विपरीत परिस्थितियों से निपटने में सक्षम पाते हैं।
यदि हम इन बातों पर ध्यान देंगे तो स्थाई रूप से खुश रह सकते हैं-🔹हमारे दुख का कारण हम स्वयं ही हैं, इसलिए खुद में बदलाव करें और मनचाही खुशियाँ प्राप्त करें।
🔹यदि कोई हमारे साथ गलत आचरण करता है तो उसे माफ कर देना चाहिए, अन्यथा तनाव हमें खुश रहने नहीं देता है।
🔹अपनी खुशियों का व्यर्थ में प्रदर्शन ना करें, क्योंकि किसी की बुरी नजर पड़ते देर नहीं लगती है।
🔹खुश रहने के लिए जरूरी है कि हम बुरे लोगों और बुरी चीजों से दूर रहें, उन पर बिल्कुल ध्यान न दें।
🔹खुशी हमारी जिंदगी के छोटे-छोटे पलों में कैद है, जिसे हम स्वयं ही आजाद कर सकते हैं।
🔹स्वयं को कार्य में इतना व्यस्त रखना चाहिए कि दुखी होने के लिए समय ही ना मिल सके।
🔹हम किसी भी धर्म को मानते हों, हमारा पहला धर्म होना चाहिए जमाने में खुशियाँ बांटना। आप खुशियों के सौदागर बनें।
🔹मन में कभी भी नकारात्मक विचार न आने दें। हर परिस्थिति में सकारात्मक सोच रखें।
🔹दूसरों की अच्छाइयों पर ध्यान दें और प्रशंसा करें।
🔹नींद पर्याप्त मात्रा में पूर्ण करें।रात को जल्दी सोएं, और सुबह जल्दी उठें, ताकि आप वातावरण की शुद्ध हवा और सूर्य का प्रकाश प्राप्त कर सकें।
🔹अपने परिवार और दोस्तों के साथ अच्छे संबंध रखें, ताकि जब आपको उनकी जरूरत हो तो आपके काम आए।
🔹स्वयं की कमजोरियाँ पहचानें, क्योंकि यही हमारे दु:ख का कारण है।
🔹खुशियाँ दूसरों से बांटें, किसी को खुशी देंगे तो आपको भी खुशी अवश्य मिलेगी।
🔹 कभी भी स्वयं की तुलना अन्य से ना करें, जो आपके पास है, उसी में संतुष्ट रहें।
, 🔹हमेशा ऐसे कार्य करें, जिनसे हमें खुशी मिलती है। जो लोग हमेशा खुश रहते हैं, उन्हें अपना दोस्त बनाएं।
🔹जब भी जीवन में कोई समस्या आए तो समाधान के बारे में सोचें। समस्या के बारे में नहीं, यही खुशी प्राप्त करने का मंत्र है।
🔹भले ही अंदर से कितने दुखी हों, चेहरे की मुस्कुराहट ना जाने दें। कुछ नया करते रहें।
🔹मन को बच्चे जैसा साफ रखना चाहिए। बुराई, ईर्ष्या, बदला लेने की भावना तथा गुस्से से दूर रहना चाहिए, क्योंकि यह सभी हमें खुशियों से दूर कर देते हैं।
🔹खुशियाँ कैसे हमें प्राप्त होगी, इस बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि हम जैसा सोचते हैं, वैसा करते हैं और वैसा बन जाते हैं।
🔹दूसरों पर बिल्कुल निर्भर ना रहें, इससे आपकी खुशियों की चाबी दूसरों के पास चली जाती है।
🔹हमारी खुशियों का रिमोट कंट्रोल हमारे पास होना चाहिए। हर परिस्थिति में खुशी के अवसर ढूंढना चाहिए ।
खुशी का स्थान हमारे जीवन में ऑक्सीजन के समान है, जिस प्रकार हम बिना ऑक्सीजन के जी नहीं सकते। जिस व्यक्ति के जीवन में खुशियों का अभाव है, वह ज्यादा दिन तक जिंदा नहीं रह सकता है। खुशी का संबंध धन से बिल्कुल नहीं है। अमीर हो या गरीब, सभी खुश रह सकते हैं।
खुशी एक ऐसा एहसास है जिसकी सबको तलाश है। भगवान ने जो हमको दिया है जिस हालत में हमें रखा है, उसी में खुश रहने की आदत डालें।
इस दुनिया में हम प्रत्येक व्यक्ति को खुश नहीं रख सकते, परंतु ऐसा प्रयास कर सकते हैं कि हमारी वजह से किसी को दु:ख न पहुंचे।हमेशा ऐसा प्रयास करें कि आप किसी की खुशी का कारण बनें, इससे आपकी जिंदगी सार्थक हो जाएगी।
परिचय-डॉ. प्रताप मोहन का लेखन जगत में ‘भारतीय’ नाम है। १५ जून १९६२ को कटनी (म.प्र.)में अवतरित हुए डॉ. मोहन का वर्तमान में जिला सोलन स्थित चक्का रोड, बद्दी(हि.प्र.)में बसेरा है। आपका स्थाई पता स्थाई पता हिमाचल प्रदेश ही है। सिंधी,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. मोहन ने बीएससी सहित आर.एम.पी.,एन. डी.,बी.ई.एम.एस.,एम.ए.,एल.एल.बी.,सी. एच.आर.,सी.ए.एफ.ई. तथा एम.पी.ए. की शिक्षा भी प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र में दवा व्यवसायी ‘भारतीय’ सामाजिक गतिविधि में सिंधी भाषा-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रचार करने सहित थैलेसीमिया बीमारी के प्रति समाज में जागृति फैलाते हैं। इनकी लेखन विधा-क्षणिका,व्यंग्य लेख एवं ग़ज़ल है। कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। ‘उजाले की ओर’ व्यंग्य संग्रह)प्रकाशित है। आपको राजस्थान द्वारा ‘काव्य कलपज्ञ’,उ.प्र. द्वारा ‘हिन्दी भूषण श्री’ की उपाधि एवं हि.प्र. से ‘सुमेधा श्री २०१९’ सम्मान दिया गया है। विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अध्यक्ष(सिंधुडी संस्था)होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य का सृजन करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं प्रेरणापुंज-प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले,हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को हम हिंदी भाषा का ज्ञान दें, ताकि हिंदी भाषा का समुचित विकास हो सके।”