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तुम बिन

ज्ञानवती सक्सैना ‘ज्ञान’
जयपुर (राजस्थान)

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विश्व सौहार्द दिवस स्पर्धा विशेष….

तुम बिन क्षण भी लगे युगों-सा,
पल-पल बहुत कठोर।
दिन भी तुम बिन लगे रात-सा,
कोई न जिसकी भोर।

तुमसे रौनक मन-उपवन में,
तुमसे सदा बहार।
फूलों में खुशबू है तुमसे,
तुमसे मन्द बयार।

जीवन में हर रंग तुम्हीं से,
तुमसे हर्ष अपार।
जन्नत जैसा सुकूँ तुम्हीं से,
तुमसे मस्त मल्हार।

तुम बिन गीत लगे बिन लय-सा,
ताल रहे कमजोर।
दिन भी तुम बिन लगे रात-सा,
कोई न जिसकी भोर।

नयनों में रौशनी तुम्हीं से,
तुमसे हर दीदार।
चलती मेरी धड़कन तुमसे,
तुमसे प्रीति खुमार।

मन में भरी उमंग तुम्हीं से,
तुमसे घर-संसार
राग और अनुराग तुम्हीं से,
तुमसे हर गुंजार।

तुम बिन पायल बिन घुंघरू-सी,
कोई न जिसका शोर।
दिन भी तुम बिन लगे रात-सा,
कोई न जिसकी भोर।

झरनों में कलकल है तुमसे,
तुमसे है झंकार।
सपनों में रिमझिम है तुमसे,
तुमसे मदिर फुहार।

मन की हर हिलोर तुमसे है,
तुमसे मन में ज्वार।
तुमसे यौवन भरी चाँदनी,
तुमसे ही श्रृंगार।

तुम बिन है निष्प्राण देह यह,
मन में नहीं हिलोर।
दिन भी तुम बिन लगे रात-सा,
कोई न जिसकी भोर॥

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