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त्याग

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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धनीराम के २ बेटे थे। बड़े बेटे का नाम सोहन तथा छोटे बेटे का नाम मोहन था। सोहन सांवले रंग का था तथा दिमाग से थोड़ा पैदल भी था। पढ़ाई-लिखाई में उसका बिल्कुल भी मन नहीं लगता था, इसलिए धनीराम ने उसे खेती के काम में लगा दिया। मोहन बहुत ही सुन्दर एवं संस्कारी लड़का था। पढ़ाई में भी अव्वल दर्जे का था।

धनीराम बेचारा नाम का ही धनी था। धन से तो जैसे बैर ही था। जैसे तैसे अपना गुजारा कर रहा था। बच्चे धीरे-धीरे कब जवान हो गए, पता ही नहीं चला। धनीराम की पत्नी लिछमी अक्सर बीमार रहती थी, इसलिए उसने सोचा कि अब बड़े बेटे सोहन की शादी कर लेनी चाहिए।
धनीराम ने रिश्ता ढूंढना शुरू कर दिया। मिलने-जुलने वालों से बात की। रिश्तेदारों से भी बात की, लेकिन कोई बात नहीं बनी। लड़की वाले सोहन को देखते ही मना कर देते तथा छोटे बेटे को पसंद कर लेते, लेकिन बड़े बेटे के होते धनीराम छोटे का रिश्ता कैसे कर सकता था।
धनीराम बड़ी उलझन में फंस गया। उसे चिंता सताने लगी। सोचने लगा कि अगर छोटे बेटे का रिश्ता कर भी लेता हूँ तो बड़ा हमेशा हमेशा के लिए कुंवारा रह जाएगा। क्या करूं, क्या नहीं करूं, धनीराम को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।
धीरे-धीरे कई साल गुजर गए। इस दौरान मोहन ने अपनी पूरी पढ़ाई कर ली थी और उसका अध्यापक पद पर चयन हो गया। सभी बहुत खुश थे। धनीराम का वर्षों का सपना पूरा हो गया था। बस उसे एक ही चिंता सता रही थी कि, अब सोहन का क्या होगा! वो कैसे अपनी ज़िंदगी पार करेगा!
मोहन के लिए अच्छे-अच्छे रिश्ते आने लगे। वह बहुत ही सज्जन एवं संस्कारी लड़का था। उसने हर रिश्ते को इसलिए ठुकरा दिया था, क्योंकि उसका बड़ा भाई अभी कुंवारा था। वो ये चाहता था कि पहले उसके बड़े भाई की शादी हो जाए तो माँ व पिताजी की चिंता दूर हो जाए।
एक दिन धनीराम सुबह-सुबह घोर चिंता में बैठा था कि, उसका साला गोपाल एक व्यक्ति को साथ लेकर उसके घर आया। उसने कहा,-“जीजाजी ये रामलाल जी हैं। बहुत ही नेक इंसान हैं। अपनी बेटियों का रिश्ता लेकर आए हैं।”
ये सुनकर धनीराम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने कहा,-“अरे! सोहन की अम्मा जरा चाय-नाश्ते की व्यवस्था करो, घर में बच्चों के लिए रिश्ता आया है।”
धनीराम ने उन्हें बड़ी इज्जत से बिठाया। वो व्यक्ति बहुत ही गरीब था। उसके ५ लड़कियाँ थी। बेचारे ने जैसे-तैसे अपनी ३ बेटियों की शादी कर दी थी तथा अपनी छोटी २ बेटियों राधा व मीरा का रिश्ता लेकर आया था। छोटी बेटी मीरा १ पैर से थोड़ी विकलांग थी, लेकिन बहुत ही सुन्दर एवं सुशील थी। पढ़ाई में बहुत ही होशियार थी।
‌ ‌ जब धनीराम को इस बात का पता चला तो वह बहुत दुःखी हो गया। उसके पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन खिसक गई थी। उसने अपने साले को अन्दर ले जाकर कहा,-“अरे गोपाल तुम ये कैसा रिश्ता लेकर आए हो ? एक विकलांग लड़की से मोहन का रिश्ता कैसे कर सकता हूँ ? नहीं…नहीं…मैं ये रिश्ता नहीं ले सकता। मैं मेरे बेटे के साथ इतना बड़ा धोखा नहीं कर सकता। मेरा बेटा बहुत सुंदर एवं संस्कारवान है। सरकारी अध्यापक है। मैं उसके साथ इतना बड़ा धोखा कैसे कर सकता हूँ।” उसकी आँखों से आँसू छलक आए।
गोपाल ने कहा,-“अरे! जीजाजी, लड़की बहुत सुंदर है और पढ़ाई में भी बहुत होशियार है।”
“लेकिन, गोपाल एक विकलांग लड़की कैसे घर को सम्भाल पाएगी और फिर मोहन मान जाएगा ?” धनीराम ने दुखी हो कर कहा।”
गोपाल ने कहा,-“जीजाजी मोहन के साथ सोहन का भी घर बंध जाएगा। थोड़ा विचार कीजिए। और फिर लड़की इतनी भी विकलांग नहीं है, जितनी आप समझ रहे हो।बस एक पैर में हल्की-सी लचक है।”
मोहन उनकी बातों को बड़े गौर से सुन रहा था। सोच रहा था कि, अगर मैं इस रिश्ते से मना कर दूंगा तो बड़े भाई की शादी कभी नहीं हो पाएगी।
वह धीरे से बाहर आया और कहने लगा, “पिताजी मुझे ये रिश्ता मंजूर है। अगर वो लड़की एक पैर से विकलांग है, तो इसमें उसका क्या दोष है। मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं उस लड़की से शादी करने के लिए तैयार हूँ।” मोहन ने अपनी आकांक्षाओं का दमन कर दिया था।
मोहन की बातों को सुनकर धनीराम की आँखों में आँसू आ गए। बोला,- “वाह! मेरे बेटे।तुझ जैसा बेटा पाकर मैं धन्य हो गया।”
सभी बहुत खुश थे। रामलाल की आँखों से आँसू नहीं रुक रहे थे। दोनों भाईयों का रिश्ता तय हो गया और बड़ी धूमधाम से उनकी शादी हो गई। सोहन, राधा के साथ बहुत खुश था और मोहन की पत्नी मीरा का घर में पैर पड़ते ही मानो सारे कष्ट दूर हो गए। कुछ दिनों बाद मीरा का भी अध्यापक पद पर चयन हो गया। वो दोनों बहुत खुश थे।
अब धनीराम और उसकी पत्नी दोनों बहुत खुश थे। मोहन का अपने बड़े भाई के प्रति प्रेम और त्याग की भावना के चर्चे पूरे गाँव में मशहूर हो रहे थे।

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।