दिल्ली
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दिल्ली विधानसभा की ७० सीटों के लिए फरवरी तक चुनाव होने की संभावनाओं को देखते हुए राजनीतिक सरगर्मियां उग्र हो गयी है। इस बार के चुनाव में आम आदमी पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटने की तैयारी में जुट गई है। वहीं, भाजपा और कांग्रेस भी इस बार सत्ता में वापसी की तैयारी में है। भाजपा दिल्ली विधानसभा का चुनाव दूसरे प्रांतों की ही भांति बिना किसी मुख्यमंत्री चेहरे के लड़ने का मन बना चुकी है और केंद्र सरकार की योजनाओं को जनता के बीच रखेगी। पार्टी का मानना है कि लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से प्रभावित हो सकते हैं। भाजपा दिल्ली में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए नए तरीके से चुनावी तैयारियों में जुट चुकी है, वही कांग्रेस अपनी खोयी जमीन को हासिल करने के लिए जद्दोजहद करती हुई दिखाई दे रही है। निश्चित ही इस बार का दिल्ली चुनाव आक्रामक एवं संघर्षपूर्ण त्रिकोणात्मक होगा। आप, कांग्रेस एवं भाजपा की चुनावी जंग में कौन सत्ता का ताज पहनेगा, यह भविष्य के गर्भ है।
भाजपा के लिए यह चुनाव संघर्षपूर्ण भी है। २०१५ और २० के विस चुनाव में जहां पार्टी को शानदार प्रदर्शन की उम्मीद थी, उसे आम आदमी पार्टी से हार का सामना करना पड़ा। तब भाजपा को दिल्ली में मुख्यमंत्री का चेहरा प्रस्तुत करने से कोई बड़ा लाभ नहीं हुआ। इसके बजाए भाजपा अब चुनावी रणनीतियों में बदलाव कर रही है और अपनी शक्ति को संगठन और लोककल्याणकारी योजनाओं के बल पर मजबूत करने का प्रयास कर रही है। यही कारण है कि दिल्ली में भाजपा आगामी चुनाव में केंद्र सरकार के काम और योजनाओं को जनता के बीच रखेगी। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि दिल्ली के लोग इससे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं, खासकर जब बात विकास, सुरक्षा, चिकित्सा और शिक्षा जैसे मुद्दों की हो। अगर भाजपा बिना किसी प्रमुख चेहरे के चुनाव लड़ती है, तो यह असमंजस की स्थिति बनने की संभावनाएं तो पैदा कर ही सकती हैं। दूसरी ओर यह फैसला एक रणनीतिक कदम हो सकता है, जिसमें प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा का इस्तेमाल करके अन्य प्रांतों की भांति दिल्ली में भी चमत्कार घटित हो सकता है।
भाजपा ने यह भी तय किया है कि दिल्ली की जनता को बताया जाएगा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उनके साथ वादाखिलाफी की है, वे बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और सड़कों की स्थिति में सुधार का वादा करके उन्हें जर्जर करते रहे हैं। भाजपा को दिल्ली में हमेशा मध्य और उच्च मध्य वर्ग के लोगों की पार्टी माना जाता है। इसमें व्यापारिक समुदाय इसके कट्टर समर्थक हैं, लेकिन इस बार निचले तबकों एवं गरीब लोगों के बीच उसे प्रभावी प्रयास करने होंगे। यह दिखता हुआ सच है कि दिल्ली में आआप शासन में विकास अवरूद्ध हुआ है, नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। ऐसे अनेक गंभीर आरोपों के साथ भाजपा आक्रामक होकर चुनावी परिदृश्यों को बदल सकती है। इसके तहत दिल्ली में परिवर्तन यात्राएं भी निकाली जाएंगी। भाजपा का इतिहास रहा है कि वह आमजन तक पहुंचने के लिए ऐसी यात्राएं निकालती रही है एवं व्यक्तिगत संवाद स्थापित करती रही है।
निश्चित ही दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जमीन अभी भी मजबूत है। इसी लिए २०२५ के चुनाव कांग्रेस एवं भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। २०२० में आम आदमी पार्टी ने ६२ सीटें जीती थीं और भाजपा को महज ८ सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस का लगातार दूसरी बार दिल्ली से सफाया हो गया था।
दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने का फैसला किया है। आप ने पिछले २ विस चुनाव में भारी अंतर से जीत हासिल की है। आआप का मत प्रतिशत पहले की तुलना में बढ़ा है और कांग्रेस कमजोर हुई है। पिछले दशक में कांग्रेस को मत देने वालों की संख्या में काफी कमी आई है, इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एवं आआप के बीच गठबंधन न होने का फायदा भाजपा को मिलता हुआ दिख रहा है। असल में आआप के मत कांग्रेस ही काटेगी।
कांग्रेस का दिल्ली में व्यापक जनाधार रहा है, लेकिन वह ‘जीत’ और ‘गठबंधन’ की मृगमरीचिका में भटकती रही है, अपनी स्वतंत्र पहचान को खोती रही है। आखिर कमजोर सियासी बैसाखियों के सहारे वह कैसे जीत को सुनिश्चित कर सकती है ? कांग्रेस की एक ओर बड़ी विडम्बना है कि वह जरूरी मुद्दों को उठाने की बजाय मोदी-विरोध का ही राग अलापती रही है, जबकि कांग्रेस के जमीनी नेताओं के पास रणनीति और जनाधार दोनों है, इसलिए उसके जमीनी नेता व्यक्तिवादी मिशन में सफल रहे, लेकिन कांग्रेस दिन ब दिन डूबती चली गई। इन स्थितियों में दिल्ली में कांग्रेस कोई करिश्मा या चमत्कार कर पाएगी, इसमें संदेह ही है।