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दिल्ली में भाजपा ने लिखी जीत की नई इबारत

ललित गर्ग

दिल्ली
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दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए न केवल २७ साल के वनवास को खत्म करने में कामयाब हुई है, बल्कि देश की राजधानी को एक नया विश्वास, नया जोश एवं सुशासन का भरोसा दिलाने को तत्पर हो रही है। निश्चित ही चुनाव नरेन्द्र मोदी के नाम पर लड़े गए और दिल्ली की जनता ने भरोसा जताया है। एक बार फिर नरेन्द्र मोदी का जादू चला एवं उनके व्यक्तित्व ने नया इतिहास रचा है। दिल्ली में भाजपा ने जीत की नई इबारत लिखी है। दिल्ली में ११ साल के बाद डबल इंजन की सरकार बनने से दिल्ली की बुनियादी समस्याओं का हल होते हुए दिख रहा है, बल्कि दिल्ली के विकास की नई गाथा लिखे जाने की शुभ शुरूआत हो रही है। अब दिल्ली में न केवल वायु प्रदूषण दूर होगा, बल्कि यमुना नदी का प्रदूषण दूर करते हुए उसका कायाकल्प किया जाएगा। चुनाव परिणाम में आम आदमी पार्टी को जिस तरह की हार का सामना करना पड़ा है, उससे ‘आआप’ सिर्फ सत्ता से ही बेदखल नहीं हो रही, बल्कि अरविन्द केजरीवाल के राजनीतिक जीवन पर भी ग्रहण लगता हुआ दिखाई दे रही है। कांग्रेस के लिए भी अपनी राजनीतिक जमीन बचाने एवं सत्ता में वापसी का सपना बुरी तरह पस्त हो गया है।
दिल्ली की लगभग सभी सीटों पर मतदाताओं ने सुशासन, भ्रष्टाचार मुक्ति, विकास एवं मुफ्त की सुविधाओं के नाम पर मत डाले हैं। दिल्ली में मुस्लिम बहुल इलाके हों, कारोबारी क्षेत्र हों या फिर पिछडे़ इलाके, सभी जगहों पर ‘आआप’ को करारा झटका लगा है। हिन्दुत्व की ताकत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक एवं भाजपा की सुनियोजित चुनाव रणनीति ने भाजपा को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मोदी-शाह की जोड़ी ने करिश्मा कर दिखाया है। ‘आआप’ एवं कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की हार ने तय किया कि राजनीति में राजशाही सोच, अहंकार एवं बड़बोलापन कामयाब नहीं है। दिल्ली के विकास मॉडल को पूरे देश में अरविन्द केजरीवाल सर्वश्रेष्ठ बताते रहे हैं, पर उसी दिल्ली की दुर्दशा, झूठे बयानों एवं तथ्यों के कारण ‘आआप’ हारी है। इस तरह अरविन्द केजरीवाल की राजनीति पर मतदाताओं ने सवालिया निशाने लगा दिए हैं।
जिस अन्ना आंदोलन से अरविंद केजरीवाल का नाम पूरे देश में सामने आया, श्री केजरीवाल ने उन्हीं अन्ना को नकार दिया था। यही करारी हार का कारण बना है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री श्री केजरीवाल की परिस्थितियों में बड़ी समानता रही हैं, पर हेमंत सोरेन की तरह श्री केजरीवाल दिल्ली की जनता का दिल जीतने में नाकामयाब रहे। दिल्ली में आप की हार अरविन्द केजरीवाल के लिए बड़ा व्यक्तिगत झटका है, क्योंकि दिल्ली का असर पंजाब की सियासत पर भी पड़ेगा। इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर दल के विस्तार को लेकर अरविंद केजरीवाल की योजना धुंधली पड़ जाएगी।
इन परिणामों ने कांग्रेस को भी आइना दिखा दिया है। उसने जिस तरह से भारत की ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ की भावना को दबाया, सनातन परंपरा को दबाया एवं मोदी विरोध के नाम पर देश-विरोध पर उतर आई, यही मूल्यहीन राजनीति उसकी हार का कारण बनी। अनेक वर्षों तक दिल्ली पर राज करने वाली कांग्रेस सत्ता में वापस आने के लिए इतनी बेचैन दिखाई दी कि वो हर दिन नफरत, द्वेष एवं घृणा की राजनीति करती रही है। कांग्रेस सांप्रदायिकता और जातिवाद के विष को दिल्ली चुनाव में भी उडेला। एक राष्ट्रीय दल, सबसे पुराना दल, ५ दशक तक देश पर शासन करने एवं दिल्ली में लगातार ३ बार सत्ता में रहने वाले दल को १-२ सीट पर ही उसकी जीत होना उसकी हास्यास्पद एवं लगातार कमजोर होने की स्थितियों को ही दर्शा रहा है।
दिल्ली में कांग्रेस के तेवरों से साफ है कि नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से रोकने में नाकामी के बाद उसने शायद अपने पुनरुत्थान के लिए दिल्ली के चुनाव को आधार बना लिया था, इसमें कोई बुराई नहीं, पर यह काम आसान नहीं रहा, कांग्रेस के सपने टूट कर बिखर गए हैं। दिल्ली में कांग्रेस की दुर्दशा ने लगभग तय कर दिया है कि मतदाता की नजरों में उसकी क्या अहमियत है ? कांग्रेस ने न केवल खुद को बल्कि इंडिया गठबंधन को भी जर्जर बना दिया है। यह एक पुरानी कहावत है कि “देश जैसी सरकार के योग्य होता है, वैसी ही सरकार उसे प्राप्त होती है।” दिल्ली में भी ऐसी ही सरकार बनने जा रही है, जो दिल्ली के हितों को प्राथमिकता देगी। दिल्ली में भाजपा की जीत नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा के प्रति जनता का विश्वास है।
राजशाही के विपरीत लोकतन्त्र में जनता के पास ही उसके एक मत की ताकत के भरोसे सरकार बनाने की चाबी रहती है और ऐसा दिल्ली में होता हुआ दिखा है। दरअसल, जनता के हाथ की इस चाबी को अपने पक्ष में घुमाने एवं जीत का ताला खोलने के लिए यह मुफ्त की संस्कृति, विभाजनकारी राजनीति एवं सनातन-विरोधी स्वर ने ‘आआप’ एवं कांग्रेस को औंधे मुँह गिरा दिया है, इस गिरावट से उभरने की संभावनाएं भी दोनों दलों के लिए बड़ी चुनौती है।
दिल्ली का चुनाव एक महायुद्ध था, जो कितने ही मुद्दों को अपने में समेटे हुए रहा। यह अनेक नेताओं एवं दलों के अस्तित्व को बचाने का भी महासंग्राम था। चुनाव में जब सेवा-सुशासन का मूल उद्देश्य गायब हो जाता है, केवल दलगत स्वार्थ और सत्ता प्राप्ति की होड़ मुख्य हो जाती है, तब दिल्ली जैसे अप्रत्याशित परिणाम ही सामने आते हैं। राजनीति में केजरीवाली प्रवृत्ति एक नयी संस्कृति का स्थान लेती रही है, जिसने हमारे सभी नैतिक मूल्यों को तार-तार कर दिया था, बहुत चर्चा होती रही है कि दिल्ली के विकास में अनेक सुराख हो गये हैं, लोगों का सांस लेना दुश्वार हो रहा था तो यमुना प्रदूषित हो गई थी, सड़कें गड्ढों में तब्दील हुई तो चिकित्सा-शिक्षा व्यवस्था चरमराई। इसलिए दिल्ली के जीवन को खतरा था। दिल्ली में ऐसे सुराख हो गए थे, जहां नेता पाप करके छुपते रहे हैं। ये सब स्थितियाँ दिल्ली को अच्छे भविष्य की ओर नहीं ले जा रही थी। स्थितियों की इसी विपरीतता ने दिल्ली की जनता को जगाया, एक-एक व्यक्ति ने दिल्ली के व्यापक हित को ऊपर समझते हुए भाजपा को जीत का सेहरा बांधा है। निश्चित ही दिल्ली में नए सूरज का अवतरण हुआ है, और उसका भविष्य शुभ दिखाई दे रहा है।