सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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कोई काग़ज़ नहीं ये तो दिल है मेरा,
खोल कर मैंने सब कुछ बयाँ कर दिया।
क्या करूँ कुछ छुपाने की आदत नहीं,
दिल में जो कुछ भरा था वो लिख सब दिया।
हूँ अकेली यही मेरा साथी-सखा
ग़म-ख़ुशी का यही एक हमराज़ है।
पन्ना-पन्ना कहानी ये कहता मेरी,
हर समय हर जगह ये मेरे साथ है।
है यक़ीं मुझको अब मैं अकेली नहीं,
अब जुबां से मैं अपने कुछ कहती नहीं।
लोग कहते हैं क्या ये मैं सुनती नहीं,
इस ज़माने से अब मैं तो डरती नहीं॥