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दीपावली की लक्ष्मी जी और अलक्ष्मी जी का संवाद

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ 
मनावर(मध्यप्रदेश)
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जगमग जीवन ज्योति (दीपावली विशेष)…

दीपावली के दिन लक्ष्मी जी, गणेश जी के साथ कुबेर जी की भी पूजा की जाती है। विघ्न विनाशक, मंगलकर्ता, ऐश्वर्य, भौतिक सुखों, धन-धान्य, शांति प्रदान करने के साथ-साथ विपत्तियों को हरने वाली लक्ष्मी, गणेश और कुबेर का महापूजन अतिफलदायी होता है। प्राचीन ग्रंथों में लक्ष्मी जी के साथ अलक्ष्मी जी का भी उल्लेख मिलता है।अलक्ष्मी जी को ‘नृति’ तथा ‘दरिद्रा’ के नाम से भी पुकारा जाता है ।लक्ष्मी जी के प्रभाव का मार्ग धन-संपत्ति, प्रगति का होता है, वहीं अलक्ष्मी जी दरिद्रता, पतन, अंधकार का प्रतीक होती है।
एक बार लक्ष्मी जी और अलक्ष्मी जी (दरिद्रा) में संवाद हुआ। दोनों एक-दूसरे का विरोध करते हुए कहने लगी-“मैं बड़ी हूँ।” लक्ष्मी जी ने कहा कि “देहधारियों का कुल शील और जीवन मैं ही हूँ। मेरे बिना वे जीते हुए भी मृतक के समान हैं।”
अलक्ष्मी जी ने कहा कि- “मैं ही सबसे बड़ी हूँ ,क्योंकि मुक्ति सदा मेरे अधीन है। जहाँ मैं हूँ, वहाँ काम, क्रोध, मद, लोभ, उन्माद, इर्ष्या और उद्दन्डता का प्रभाव रहता है।”
अलक्ष्मी की बात सुनकर लक्ष्मी जी ने कहा-“मुझसे अलंकृत होने पर सभी प्राणी सम्मानित होते हैं। निर्धन मनुष्य जब दूसरों से याचना करता है, तब उसके शरीर से पंच देवता-बुद्धि, श्री, लज्जा, शांति और कीर्ति तुरंत निकलकर चल देते हैं। गुण और गौरव तभी तक टिके रहते हैं, जब तक कि मनुष्य दूसरों के सामने हाथ नहीं फैलाता। अत: दरिद्रे, मैं ही श्रेष्ठ हूँ।”
दरिद्रा ने लक्ष्मी जी के दर्पयुक्त तर्क को सुनकर कहा-“जिस प्रकार मदिरा पीने से भी पुरुष को भयंकर नशा नहीं होता, जैसा तेरे समीप रहने मात्र से विद्धवानों को भी हो जाता है। योग्य, कृतज्ञ, महात्मा, सदाचारी, शांत, गुरू सेवा, परायण, साधु, विद्वान, शूरवीर तथा पवित्र बुद्धि वाले श्रेष्ठ पुरुषों में मेरा निवास है। तेजस्वी सन्यासी मनुष्यों के साथ मैं रहा करती हूँ।”
इस तरह विवाद करते हुए समाधान हेतु दोनों ब्रम्हा जी के पास पहुंचीं। ब्रम्हा जी ने कहा कि -“पृथ्वी और जल दोनों देवियाँ मुझसे ही प्रकट हुई है। स्त्री होने के कारण वे ही स्त्री के विवाद को समझ सकती है। नदियों में भी गौतमी देवी सर्वश्रेष्ठ है। वे पीड़ाओं को हरने वाली तथा सबका संदेह निवारण करने वाली है। आप दोनों उन्हीं के पास जाएँ।”
लक्ष्मी जी और दरिद्रा में बड़ी कौन है, के विवाद को सुलझाने हेतु यह गौतमी देवी के पास पहुँचीं। गौतमी देवी (गंगा जी) ने कहा कि ब्रह्श्री, तपश्री, यग्यश्री, कीर्तिश्री, धनश्री, यशश्री, विधा, प्रज्ञा, सरस्वती, भोगश्री, मुक्ति, स्मृति, लज्जा, धृति, क्षमा, सिद्धि, वृष्टि, पुष्टि, शांति, जल, पृथ्वी, अहंशक्ति, औषधि, श्रुति, शुद्धि, रात्रि, धुलोक, ज्योत्सना, आशी, स्वास्ति, व्याप्ति, माया, उषा,
शिवा आदि जो कुछ भी संसार में विदयमान है, वह सब लक्ष्मी जी द्वारा व्याप्त है। ब्राम्हण, धीर, क्षमावान, साधु, विद्द्वान, भोग परायण तथा मोक्ष परायण पुरुषों जो-जो श्रेष्ठ सुंदर है, वह लक्ष्मी जी का ही विस्तार है। दरिद्रा, क्यों तू लक्ष्मी जी के साथ स्पर्धा करती है ? जा चली जा यहाँ से, कहकर दरिद्रा को भगा दिया।
इसी कारण तब से गंगा जी का जल दरिद्रा का शत्रु हो गया। कहते हैं कि तभी तक दरिद्रा का कष्ट उठाना पड़ता है, जब तक गंगा जी के जल का सेवन न किया जाए। इसी लिए गंगाजी के जल में स्नान और दान करने से मनुष्य लक्ष्मीवान तथा पुण्यवान होता है, साथ ही उस पर लक्ष्मी जी का आशीर्वाद भी बना रहता है।

दीवाली के दीपक के प्रकाश में आत्ममंथन, आत्मलोचन, आत्मोउन्नति को प्राप्त करने की दिशा में अंधकार को उखाड़कर प्रकाश की राह पर चलने हेतु अन्यों को भी उन्नति-उजाले की राह दिखाने का प्रयत्न करते आ रहे हैं। यही प्रकाश का आगमन, आराध्य की तरह सर्वत्र पूजनीय तो है ही, साथ ही लक्ष्मी, गणेश व कुबेर के स्वागत हेतु दीपों को जलाना दीवाली पर उनके आगमन का शुभ सूचक होते हैं।

परिचय-संजय वर्मा का साहित्यिक नाम ‘दॄष्टि’ है। २ मई १९६२ को उज्जैन में जन्में श्री वर्मा का स्थाई बसेरा मनावर जिला-धार (म.प्र.)है। भाषा ज्ञान हिंदी और अंग्रेजी का रखते हैं। आपकी शिक्षा हायर सेकंडरी और आयटीआय है। कार्यक्षेत्र-नौकरी( मानचित्रकार के पद पर सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि के तहत समाज की गतिविधियों में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,दोहा,हायकु,लघुकथा कहानी,उपन्यास, पिरामिड, कविता, अतुकांत,लेख,पत्र लेखन आदि है। काव्य संग्रह-दरवाजे पर दस्तक,साँझा उपन्यास-खट्टे-मीठे रिश्ते(कनाडा),साझा कहानी संग्रह-सुनो,तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो और लगभग २०० साँझा काव्य संग्रह में आपकी रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर ३८ साल से रचनाएँ छप रहीं हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में देश-प्रदेश-विदेश (कनाडा)की विभिन्न संस्थाओं से करीब ५० सम्मान मिले हैं। ब्लॉग पर भी लिखने वाले संजय वर्मा की विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-मातृभाषा हिन्दी के संग साहित्य को बढ़ावा देना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,तो प्रेरणा पुंज-कबीर दास हैंL विशेषज्ञता-पत्र लेखन में हैL देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-देश में बेरोजगारी की समस्या दूर हो,महंगाई भी कम हो,महिलाओं पर बलात्कार,उत्पीड़न ,शोषण आदि पर अंकुश लगे और महिलाओं का सम्मान होL