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दूर के सुहाने ढोल

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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धूमकेतु पर रखते लगाम,
निहारिकाएं नयनाभिराम।
ऊपर से मुग्ध करे,
अंदर से उथल-पुथल
इस शालीन शांति में,
मायावी गुम हलचल।
एक शक्ति से सभी बंधे हैं,
चलते रहते सतत अविराम।
तारों का यह उपद्रव,
उल्काओं का उत्पात
सूरज का यह विप्लव,
ये चाँद का आघात।
ज्वाला की वर्षा करना,
बस एक यही तो इनका काम।
उधमी उधम राशियाँ,
सभी हड़कंप मचाते
दूर के सुहाने ढोल,
हड़काते,कंपाते।
नहीं चाहिए चाँद-सितारे,
वहाँ सुबह होती है न शाम॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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