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देश की सेहत के लिए ‘नशा’ नासूर

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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किसी भी देश की प्रगति और उज्जवल भविष्य के सौष्ठव का कल्पनात्मक सम्भावित अनुमान उस देश की युवा पीढ़ी से लगाया जाता है। वह पीढ़ी अपने व्यक्तिगत चरित्र और बौद्धिक पक्ष का निर्माण किस प्रकार से करती है ? उसका कल्पनात्मक, भावात्मक और संवेगात्मक विकास किस प्रकार के सामाजिक वातावरण में पल्लवित, पुष्पित और परिवर्धित होता है ? ये सारी बातें उनके देश के भविष्य के निर्माण का पूरा मार्ग निर्मित करती है। जब कोई किसी अन्य देश की नजरों में उन्नत होने लगता है, अपनी सम्पदा तथा नेतृत्व के बल पर उन देशों से आगे निकलने लगता है। वह चाहे आर्थिकी के बल पर हो, मनोयोग के बल पर हो या राष्ट्रीयता और प्रतिष्ठा के बल पर हो। तब विदेशी ताकतें उस देश को दबाने के लिए हर सम्भव कोशिश करती है। पुराने समय में साम्राज्यवाद की नीति के तहत प्रत्यक्ष युद्ध हुआ करते थे और आज सीमा विवाद, घुसपैठ, कूटनीति तथा कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक पैंतरे अपनाए जाते हैं, परन्तु यह बात अमूमन इतिहास के झरोखों से भी देखी गई है कि, जब-जब ये नीतियाँ उस उभरते हुए राष्ट्र को दबाने में विदेशी साजिशों द्वारा कामयाब नहीं होती है, तब विरोधियों द्वारा सुरा-सुन्दरी का सहारा आदिकाल से लिया गया है। ये २ चीजें ऐसी हैं कि, इनसे किसी भी देश का युवा बच नहीं पाता और जब किसी देश का युवा ही पथ भ्रष्ट हो गया तो, फिर उस देश के पतन के लिए किसी को कोई अन्य प्रयत्न करने की जरूरत नहीं रहती। इन बुराइयों की पहले तो लत लगाई जाती है, फिर कड़ी दर कड़ी जुड़ती जाती है। धीरे- धीरे सारा देश खुद-ब-खुद इनकी चपेट में आकर चारों ओर से संकट में घिर जाता है। फिर वह राष्ट्र ता-उम्र उस गंभीर समस्या से मुक्ति पाने में उलझा रहता है और अन्य देश उसकी इस दशा में बाहर से मदद करने का दिखावा करके उसकी मानव-प्राकृतिक सम्पदा का दोहन- शोषण करते रहते हैं। ऐसे में वह राष्ट्र अपने पाँव पर पुनः खड़ा होने के लिए या तो कड़ा संघर्ष झेलता है, या उसी दशा में दूसरों की मेहरबानियों पर टिका रहता है। इन दोनों परिस्थितियों में मौज वही लूटते हैं, जो उस राष्ट्र की मदद करने का प्रदर्शन पूरी दुनिया के सामने करते हैं।

आज़ जातिवाद और धर्मवाद का जहर भारत में जितना तेजी से फैल रहा है, उससे भी कहीं ज्यादा तेजी से भारत में नशे का खतरनाक विष फैल चुका है। अब उस पर अश्लील सिनेमा या सामाजिक माध्यम की देवर-भाभी, नौकर-मालकिन, मालिक-नौकरानी या फिर पड़ोसी-पड़ोसन आदि के वीडियो की चमक का तड़का भी साथ-साथ लगता रहे तो, युवा पीढ़ी की मानसिकता क्या होगी ?, हम समझ सकते हैं। आज सामाजिक मीडिया या सिनेमा की दुनिया द्वारा जो सामाजिक वातावरण युवा पीढ़ी के सामने तैयार किया जा रहा है, वह हमारे राष्ट्र की प्रगति में बाधक सिद्ध होगा। राष्ट्र यदि शरीर है तो, युवा पीढ़ी उसकी नसें और धमनियाँ हैं। अब जब किसी शरीर की नस-नस में ही अचेत कर देने वाला नशा डाल दिया जाए तो, उस देह का चल फिर पाना कहाँ से सम्भव होगा ? कोई माने या न माने, पर आज भारत में विदेशों से होता हुआ ‘चिट्टा’ जैसा मादक पदार्थ आ रहा है और भारतीय युवाओं में धड़ल्ले से बिक रहा है। यह आ कैसे रहा है, और किसका संरक्षण है ?, यह कहना बड़ा मुश्किल है, क्योंकि ऐसे अवैध धंधे में कई बार कई बड़े लोगों और कारोबारियों के संलग्न होने की खबरें भी सुनने को मिलती है, पर इस बात की पुष्टि हम नहीं कर सकते हैं। हाँ, सवाल जरूर खड़ा होता है कि, अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुरक्षा व्यवस्था के बीच से भी यह अवैध सामग्रियाँ देशों की सीमाओं से आर-पार होती कैसे हैं ? अगर यह सब किसी साजिश के चलते जान-बूझ कर भी किया जाता है तो, फिर जिस देश को तबाह करने के लिए ये सामग्रियां उस देश में भेजी जाती हैं ; उस देश में वे सामग्रियां कड़ी सुरक्षा की मुस्तैदी में भी एक कोने से दूसरे कोने तक वितरित कैसे होती हैं ? कौन है इन खुफिया एजेंसियों से मिला हुआ ? कैसे फैल रहा है नशे का धंधा ?
सवाल खड़े करते-करते जबाव में सिवाय निराशा के कुछ भी नहीं मिलेगा। राजनीतिक दलों से पूछेंगे तो वे एक-दूसरे पर इल्जाम लगाकर अपना पल्लू झाड़ते हैं और व्यवस्था या तो छानबीन चल रही है, या फिर हमें तो किसी ने सूचना ही नहीं दी, आदि-आदि कह कर पीछा छुड़वा लेती है। रही बात जनता की तो, वह तो इस बारे में अपने को बिल्कुल निर्दोष साबित करती है। वह सब दोष व्यवस्था और सरकारों के सिर फोड़ती है।सच पूछें तो दोषी तो हम सब के सब हैं, क्योंकि देश में हर राज्य में किसी न किसी दल की सरकार है न ? यदि एक दल साजिश में शामिल है तो, दूसरे दल की सरकार वाले राज्य में तो यह अवैध धंधा रुकना चाहिए था ?, पर यह तो भारत के हर राज्य में फैल रहा है। व्यवस्था के पास जानकारी तो पूरी है, पर फिर अनभिग्यता या कार्यवाही के नाम पर उदासीनता क्यों दिखाई जाती है ? कार्यवाही भी जनता की शिकायत पर की जाती है और जनता है कि, बुरा बनना नहीं चाहती। फिर कैसे रुकेगा यह गोरखधंधा ? यह हम सबकी सामूहिक साजिश है। हम अपने देश को खुद ही भय, चन्द पैसों के लालच और रातों-रात करोड़पति बनने के चक्कर में घूसखोरी तथा व्यवस्थात्मक चोरी के चलते बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। आए दिन किसी न किसी राजनेता, धर्मनेता, अधिकारी, व्यवसायी और कर्मचारी के इन धंधों में संलिप्त होने की खबरें हम सुनते ही रहते हैं। इन धंधों में स्त्री और पुरूष दोनों वर्गों की जुगलबंदी भी हमारे सामने ही है। हमें समझना होगा कि, अवैध दौलत की लालसा में देश को डुबाने की हमारी सामूहिक भागीदारी सुनिश्चित हो रही है। यदि ऐसा ही रहा तो, नशा हमारी भावी पीढ़ी की नस-नस में होगा और वासना तथा हवस उनके दिमाग में होंगी। उनका शरीर बाहर से तो हाड़-माँस का ढांचा दिखेगा, पर अन्दर उसमें ताकत ही नहीं होगी। बिना ताकत की आबादी देश के लिए क्या-क्या खतरे ला सकती है, यह तो कल्पना ही भयावह है। भले ही तब हमारे पास घरों में ढेर दौलत होगी, पर उस दौलत का कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा, जब हमारी संतानें एक प्रकार से अपाहिज जैसी होंगी।
सब जानते हैं कि ‘चिट्टा’ जैसे मादक पदार्थ आदमी का तंत्रिका तंत्र ही नष्ट कर देते हैं। फिर यदि हम समझें कि, उससे सुरक्षित रह पाएंगे तो वह भी हमारी भूल ही होगी। कारण यह है कि, पड़ोस में आग चाहे किसी के द्वारा लगाई गई हो या खुद लगी हो या किसी की गलती से लगी हो, उसकी जद में हमारा घर भी धीरे-धीरे आ ही जाता है। ऐसी स्थिति में सामूहिक प्रयास से ही उस आग से बचने के लिए कोई बचाव किया जा सकता है। सवाल फिर उठता है कि, जब सभी को मादकता की गर्त में धकेल दिया जाएगा तो फिर कोई आपके लिए सामूहिक प्रयास क्यों करेगा ?

इसलिए धू-धू जलते देश के भविष्य को देख कर हमें आज ही लामबंद होने की जरूरत है। सरकारें, सरकारी और खुफिया तन्त्र के माध्यम से इस महाविनाश को रोकने की ईमानदार कोशिश करें और दल ऐसे मुद्दों पर कोई राजनीति न करें। व्यवस्थाएं ऐसी राष्ट्र विनाशकारी समस्या से सख्ती और ईमानदारी से निपटें, ना कि दबाने की कोशिश करें। जनता अपने गली-मोहल्ले में इस पाप को रोकने के लिए ईमानदार कोशिश करें। यदि कोई अपना सगा व्यक्ति भी ऐसा धंधा करता है तो, सूचना तुरन्त पुलिस अधिकारी को दें। कोई किसी से सहानुभूति या रिश्तेदारी ना निभाएं, वरना यह छोटा-सा फोड़ा देखते ही देखते लाइलाज नासूर बन जाएगा, जो देश की सेहत के लिए किसी भी प्रकार से ठीक नहीं है।