हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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तुम क्या जानो ओ नई पीढ़ी के लोगों ?
हमने यहाँ तक क्या-क्या थपेड़े खाए हैं ?
पक्के चावल के पानी में तड़का लगाकर,
उसी में मिलाकर पक्के चावल खाए हैं।
दूध के अभाव में रोते बच्चों को माताएं,
पानी में आटा घोल कर दूध बताती थी
भूख लगने पर भूखे बच्चों को लस्सी में,
मक्की का आटा पका कर खिलाती थी।
नसीब न होते चावल महीनों तक,
मिलते थे,
संक्रान्ति जब आती थी
बच्चों को खिलाती पहले थी माताएं,
खुद तो बाद में ही बेचारी खाती थी।
तुम क्या जानो ओ नई पीढ़ी के लोगों ?
हम दीपक की लौ में रात को पढ़ते थे
घंटों पैदल चलते थे घर से स्कूलों को,
सुबह-शाम सब संग खेतों में खड़ते थे।
आज तो जमाना बदल गया है,
नई पीढ़ी अनाज कहाँ खाती है ?
हार्लिक्स-बोर्नविटा भी माताएं,
जबरदस्ती बच्चों को खिलाती हैं।
पैदल कहाँ जाते हैं स्कूल आज बच्चे ?
खेतों में तो अब पाँव तक न धरते हैं
सुबह से शाम तक फोन में ही रहते,
पढ़ाई का काम भी ठीक न करते हैं।
हमारे फटते थे कहीं से जब कपड़े,
माताएं टाँका-टुप्पा तब लगाती थी
एक ही सूट को बचा-बचा कर के,
तब सालों तक बेचारी चलाती थी।
आज फटते कहाँ है कपड़े लोगों के ?
बल्कि फटे कपड़े ही लोग लाते हैं।
जीन्स के दौर में टाँका-टुप्पा कहाँ ?
दर्जी से भी नए कपड़े नहीं सिलाते हैं।
भाई बदल गया है दौर बहुत अब,
दो जमानों में अन्तर भी बहुतेरा है
वह दौर जो था घने अभावों का तो,
आज सब सुख सुविधाओं ने घेरा है।
सुविधा भोगी नई पीढ़ी क्या जाने कि,
जीवन में क़िल्लत क्या बला होती है ?
बाल नोंचते भूखे बच्चे को देख कर,
रोटी के अभाव में माताएं कैसे रोती हैं ?
अधिक सुविधा भी ठीक नहीं है,
ये भी आदमी को षठ बनाती है।
जेब की गर्मी लोगों से मदहोशी में,
फिर उल-जलूल हरकतें कराती है॥