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धड़कन होती तेज

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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मन मेरा माने नहीं,कैसे रखूँ सहेज।
जब-जब आती याद है,धड़कन होती तेज॥
धड़कन होती तेज,करूँ क्या तुम बतलाओ।
मेरे प्यारे दोस्त,तुम्हीं अब तो समझाओ॥
कहे विनायक राज,आसरा अब है तेरा।
मिले उसी का प्यार,चाहता है मन मेरा॥