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नई पारी में चक्रव्यूह को भेदेगा उजाला

ललित गर्ग

दिल्ली
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अठाहरवीं लोकसभा चुनाव के नतीजे भले ही अपने अंदर कई संदेशों को समेटे हुए हैं, भले ही भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला हो, भले ही ‘इंडिया गठबंधन’ एक चुनौती के रूप में खड़ा हुआ हो, फिर भी तीसरी बार नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनते हुए नए भारत एवं सशक्त भारत को निर्मित करने के लिए वे पहले २ कार्यकाल से अधिक शक्ति, संकल्प एवं जिजीविषा के साथ आगे बढ़ रहे हैं। सीटों के लिहाज से भाजपा को भले ही नुकसान हुआ, लेकिन लगातार तीसरी बार वह सबसे बड़ा दल बनकर उभरी। ओडिशा और तेलंगाना में दल ने अपने शानदार प्रदर्शन से सबको चौंकाया है। ओडिशा में लोकसभा ही नहीं, विधानसभा में भी दल ने बीजू जनता दल का २४ साल से चला आ रहा वर्चस्व तोड़ा। अरुणाचल प्रदेश की ६० सदस्यीय विधानसभा चुनाव में ५४ प्रतिशत मत और ४६ सीटों के प्रचंड बहुमत के बल पर भाजपा सरकार बनाने में सफल हुई है। वहीं, गुजरात, छतीसगढ़ और मध्य प्रदेश भाजपा के गढ़ बने हुए हैं, जबकि देश की राजनीति में अब भी नरेन्द्र मोदी सबसे बड़े एवं वर्चस्वी नेता है। वे अब भी अपने चौंकाने वाले एवं आश्चर्य में डालने वाले विलक्षण और अनूठे फैसलों से राष्ट्र को विकास की नई उड़ान देते रहेंगे। भाजपा को कम सीटें मिलने के कारणों की समीक्षा एवं मंथन करते हुए हार के कारणों को सहजता एवं उदारता से स्वीकारना चाहिए एवं जिन गलतियों के कारण कम सीटें मिली, उन्हें दूर करना चाहिए।
इस बार के चुनाव को नियोजित एवं प्रभावी तरीके से करने में चुनाव आयोग की भूमिका सराहनीय रही। भले ही इडिया गठबंधन ने ई.वी.एम. और आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगाकर देश एवं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कलंकित किया था, लेकिन परिणाम ने न केवल इस प्रकार के भ्रामक, गुमराह करने वाली बातों एवं मिथकों को तोड़ दिया, बल्कि इसने भारत के जीवंत, बहुलतावादी, पंथनिरपेक्षी और स्वस्थ लोकतांत्रिक छवि को पुनर्स्थापित किया है। प्रधानमंत्री मोदी का अंधविरोध करने वाला वाम-जिहादी-सम्प्रदायवादी राजनीतिक समूह ने अपने इस वाहियात प्रलाप एवं राष्ट्र-विरोधी षड़यंत्र में कोई कमी नहीं छोड़ी। बावजूद इसके इंडिया गठबंधन के घटक दलों के लिए चुनाव परिणाम अनेक अर्थों में संतोषजनक रहे हैं। कांग्रेस के लिए ये यह चुनाव नए जीवन का वाहक बना हैं। वैसे भी एक आदर्श लोकतंत्र के लिए सशक्त विपक्ष का होना जरूरी है, यही लोकतंत्र को खूबसूरती देता है। भारतीय मतदाताओं ने इंडिया गठबंधन को विपक्षी भूमिका प्रभावी ढंग से निभाने का संदेश दिया है।
इस बार के चुनाव परिणाम ने अनेक राजनीतिक दलों के सामने भी कई प्रश्न खड़े किए हैं। कौन जेल में रहेगा, इसका फैसला अदालतें करती हैं, परंतु दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस चुनाव को अपने जेल के अंदर रहने या बाहर रहने का अधिकार मतदाताओं को सौंपा था, जिसका नतीजा यह रहा कि उनके शासित राज्य दिल्ली में ‘आप’ का खाता तक नहीं खुला, वहीं उनका दल पंजाब में विधानसभा चुनाव-२०२२ का चमत्कार दोहराने में विफल हो गया और १३ में से केवल ३ सीटें ही जीत पाए। शरद पवार का राजनीतिक वारिस कौन और असली शिवसेना किसकी ? क्या माया और ममता अब भी ताकतवर हैं ? यह चुनाव ऐसे ही कई सवालों के साथ शुरू हुआ था। इनमें से कुछ के जवाब मिल गए हैं और कुछ के बाकी हैं। जिस तरह के नतीजे आए हैं, उससे यह संदेह भी पैदा हुआ है कि क्या देश में आर्थिक सुधार जारी रहेंगे ? क्या देश विकास के पथ पर अग्रसर होता रहेगा ? नीतिगत स्थिरता का क्या होगा ? शायद इसी संदेह की वजह से शेयर बाजार में भारी गिरावट आई, लेकिन नरेन्द्र मोदी के पहले भाजपा मुख्यालय में दिए उद्बोधन एवं गठबंधन दलों के साथ हुई बैठक में इन सवालों के जवाब काफी हद तक मिल गए, जिससे शेयर बाजार ने भी तेजी पकड़ी है एवं भाजपा एवं सहयोगी दलों के कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार हुआ है।
देश एक बार फिर गठबंधन सरकारों के युग में प्रवेश कर रहा है। अब यह एक हकीकत है कि, मौजूदा जनादेश के मद्देनजर गठबंधन सरकार बनाना भाजपा की मजबूरी हो गई है। निश्चित रूप से पूर्ण बहुमत के साथ सहयोगी दलों के साथ सरकार चलाने और अल्पमत में सहयोगी दलों के साथ सरकार चलाने में बड़ा फर्क है, लेकिन मोदी के नेतृत्व में सरकार मजबूती के साथ आगे बढ़ेगी और अपने संकल्पों एवं योजनाओं को आकार देगी, इसमें कोई संदेह नजर नहीं आता है। अटल बिहारी वाजपेयी भी गठबंधन सरकार की चुनौतियों से जूझते रहे, लेकिन मोदी की स्थितियां भिन्न है। वे राजनीति के धुंरधर खिलाड़ी और अमित शाह राजनीतिक जोड़-तोड़ के खिलाड़ी हैं, इसे देखते हुए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार सफलतापूर्वक अपना काम कर सकेगी, ऐसा विश्वास है।
देश-विदेश के दबावों को झेलते हुए उन्होंने भारत को एक शक्ति के रूप में खड़ा किया है, दुनिया जब आर्थिक संकट झेल रही है, भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, निश्चित ही गठबंधन सरकार का उनका संचालन, उनकी नेतृत्व क्षमता और सबको साथ लेकर चलने के राजनीतिक कौशल को एक नया आयाम देगी। उनके पास चुनौतियों के बीच देश की समस्याओं का समाधान करने की एक राजनीतिक दृष्टि एवं कौशल है।
गठबंधन सरकारों के कुछ सकारात्मक पक्ष होते हैं तो कुछ नकारात्मक पक्ष भी। इन स्थितियों से निबटने के लिए मोदी सरकार पहले ही अन्य निर्दलीय सांसदों एवं अन्य दलों को अपने साथ जोड़ने का उपक्रम कर रही है। सहयोगी दल अनुचित मांग एवं दबाव की बजाय अपने राज्य के राजनीतिक एवं आर्थिक हितों की चिंता करें, लेकिन ऐसा करते समय उन्हें राष्ट्रीय हितों को ओझल नहीं करना चाहिए।
निश्चित ही मोदी सरकार के सामने चुनौतीपूर्ण स्थितियाँ हैं। आज द्रोण नहीं, तुष्टिकरण है, कृपाचार्य नहीं भ्रष्टाचार है, अश्वत्थामा नहीं आतंकवाद है, दुर्याेधन नहीं महत्वाकांक्षा एवं अनैतिकता है, शकुनि नहीं आंतरिक और वैश्विक षड्यंत्र है, राष्ट्रवाद नहीं समस्त प्रकार की विघटनकारी शक्तियां-भाषावाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, स्वार्थवाद आदि हैं और कर्ण नहीं कट्टरवाद है। साथ में महंगाई, बेरोजगारी, असंतोष आदि की अत्यंत जटिल समस्याएं भी हैं और अब भारत इनमें फंसा हुआ है। फिर भी नरेन्द्र मोदी रूपी उजाला अपनी नई पारी में अधिक सशक्त होकर भारत के इन सभी चक्रव्यूह को भेदेगा।