पटना (बिहार)।
कवि को चाहिए कि अपनी कुछ प्रतिनिधि कविता को कंठस्थ याद कर ले, और काव्य मंचों पर बिना कागज-मोबाइल देखे काव्य पाठ करें। श्रोताओं की आँखों से अपनी आँखें मिलाते हुए, ताकि पढ़ी जा रही कविता का सही प्रतिसाद मिल सके। हमारे मंच का यह उद्देश्य है कि, नई प्रतिभाओं को काव्य मंच से जोड़ते हुए काव्य पाठ करने का सही तरीका सिखाया जाए।
राष्ट्रीय कवि संगम की जिला इकाई पटना द्वारा बोरिंग रोड में अवस्थित विकास वैभव द्वारा प्रवृत्त के कार्यालय में इकाई अध्यक्ष डॉ. अंकेश कुमार के संयोजन में काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रभाकर कुमार राय ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए। मुख्य अतिथि मधुरेश नारायण और विशिष्ट अतिथि हरेंद्र सिन्हा (चंडीगढ़) रहे।
गोष्ठी का सशक्त संचालन करते हुए वरिष्ठ कवि, कथाकार और समालोचक सिद्धेश्वर ने कहा कि, बड़े-बड़े कवि सम्मेलनों की अपेक्षा इस तरह की छोटी-छोटी गोष्ठियों से नए लेखकों में सृजनात्मक विकास होता है। नए कवियों को अपने पुराने कवियों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। सृजनात्मक विकास के लिए यह जरूरी भी है।
गोष्ठी की शुरुआत अंकेश कुमार की सरस्वती वंदना से हुई-‘माँ वीणा वाणी तू अमृत की धार है।’ इसके पश्चात सिद्धेश्वर ने ‘इस कदर किस्मत कहर ढाती है, खुशी हमें छूकर गुजर जाती है!, हरेंद्र सिन्हा ने ‘कितना सुंदर देश है अपना, घूम-घूम कर देखो जी’ सहित परमानंद कनक ने ‘पर्यावरण हम सबका है जीवन का आधार’, नसीम अख्तर ने ‘ख़बर है के वो मुझसे अक्सर मिलेंगे, मैं ये सोचता हूँ के क्यों कर मिलेंगे ?’ और केशव प्रभाकर ने ‘अभी चेतक और महाराणा की शान बाकी है, हमारे रक्त के कण-कण में हिंदुस्तान बाकी है।’ जैसी नज़्म और ग़ज़लों का पाठ कर मनमुग्ध कर दिया। समापन अंकेश कुमार के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।