डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’
सोलन(हिमाचल प्रदेश)
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पुराने समय में महिलाएं प्रसव घर पर ही करती थी। उस समय दाईयाँ होती थी, जो सुरक्षित प्रसव कराती थी। अस्पताल जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी, न कोई ज्यादा खर्च, न कोई झंझट। बहुत सरलता से प्रसव हो जाता था, पर वर्तमान युग में प्रत्येक प्रसव अस्पताल में हो रहा है और पैसा कमाने के चक्कर में साधारण प्रसव के स्थान पर चिकित्सक आपरेशन द्वारा प्रसव कराते हैं।बच्चे के जन्म के साथ परिवार में खुशियाँ आती है और प्रसव आपरेशन द्वारा होता है तो चिकित्सक का बिल बढ़ जाता है, इसलिए आपकी खुशी के साथ साथ वह भी खुश हो जाता है।
पहले जब कोई व्यक्ति बीमार या दुर्घटनाग्रस्त होता था, तो चिकित्सक यथासंभव साधनों द्वारा उसका उपचार करते थे।उनकी भावना मरीज को ठीक करने की होती थी। जब हमारा उद्देश्य सही होता है, तो स्वयं भगवान आपकी मदद करने के लिए आ जाते हैं और अक्सर बीमार ठीक हो जाते थे।
आजकल जितने नए अनुसंधान हुए हैं, उनके अनुपात से रोगों की संख्या भी बढ़ी है। आज जैसे ही रोगी अस्पताल में आता है, उनकी अनावश्यक पैथोलॉजी जाँच, अनावश्यक एक्स-रे, सोनोग्राफी, एंजियोग्राफी, एम.आर.आई. और सी.टी. स्कैन कराए जाते हैं। इन जाँचों का उपयोग मरीज को ठीक करना कम, बल्कि बिल बढ़ाना है ताकि चिकित्सक कमाई कर सके।इतना तो छोड़िए, अब तो डॉ. मृत शरीर को को भी वेंटीलेटर पर रखकर ५-६ दिन उससे भी कमाई करते है। वेंटीलेटर एक जीवन सहायता तंत्र है, पर इससे मरीज की नहीं, बल्कि चिकित्सक की ज़िंदगी को ज्यादा मदद मिलती है। कहते हैं-भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती।
चिकित्सक आजकल जन्म और मृत्यु को भी अपने हाथ में ले रहे हैं। मरीज अपनी समस्या के निदान के लिए अस्पताल आता है परन्तु आधुनिक अस्पताल उनकी समस्या घटाने नहीं, अधिक बढ़ाने के लिए है।
हमें यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि यदि हम किसी के साथ गलत व्यवहार करते हैं तो हमारे साथ कुछ अच्छा नहीं होने वाला।इसलिए, चिकित्सक वही करें जिससे मरीज का हित हो। जन्म और मृत्यु से छेड़-छाड़ न करें। उसे स्वाभाविक रूप से सम्पन्न होने दें।
परिचय-डॉ. प्रताप मोहन का लेखन जगत में ‘भारतीय’ नाम है। १५ जून १९६२ को कटनी (म.प्र.)में अवतरित हुए डॉ. मोहन का वर्तमान में जिला सोलन स्थित चक्का रोड, बद्दी(हि.प्र.)में बसेरा है। आपका स्थाई पता स्थाई पता हिमाचल प्रदेश ही है। सिंधी,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. मोहन ने बीएससी सहित आर.एम.पी.,एन. डी.,बी.ई.एम.एस.,एम.ए.,एल.एल.बी.,सी. एच.आर.,सी.ए.एफ.ई. तथा एम.पी.ए. की शिक्षा भी प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र में दवा व्यवसायी ‘भारतीय’ सामाजिक गतिविधि में सिंधी भाषा-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रचार करने सहित थैलेसीमिया बीमारी के प्रति समाज में जागृति फैलाते हैं। इनकी लेखन विधा-क्षणिका,व्यंग्य लेख एवं ग़ज़ल है। कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। ‘उजाले की ओर’ व्यंग्य संग्रह)प्रकाशित है। आपको राजस्थान द्वारा ‘काव्य कलपज्ञ’,उ.प्र. द्वारा ‘हिन्दी भूषण श्री’ की उपाधि एवं हि.प्र. से ‘सुमेधा श्री २०१९’ सम्मान दिया गया है। विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अध्यक्ष(सिंधुडी संस्था)होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य का सृजन करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं प्रेरणापुंज-प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले,हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को हम हिंदी भाषा का ज्ञान दें, ताकि हिंदी भाषा का समुचित विकास हो सके।”