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‘पटना काव्य गोष्ठी’ में बिखरे रचनाओं के सुंदर रंग

पटना (बिहार)।

रविवार को ‘युगानुगूँज’ संस्था के तत्वावधान में डॉ. निशि सिंह के आवास पर ‘पटना काव्य गोष्ठी’ का आयोजन हुआ। इसकी अध्यक्षता कवयित्री डॉ. पंकज़वासिनी (बिहार प्रमुख) ने की। गोष्ठी में सभी कवियों ने एक से बढ़कर एक कविताओं का पाठ किया।
संस्था की शहर प्रमुख डॉ. निशि सिंह ने आगत कवियों का स्वागत करते हुए कहा कि, नए-पुराने साहित्यकारों को एक मंच पर लाकर एक-दूसरे से कुछ सीखने के इस सारस्वत आयोजन में आपकी सहभागिता हमारे लिए वंदनीय है। सशक्त संचालन करते हुए साहित्यकार व सम्पादक सिद्धेश्वर ने कहा कि, इस तरह की छोटी-छोटी सार्थक घरेलू साहित्यिक गोष्ठियाँ उर्वरा का काम करती हैं, जिससे अच्छे साहित्य का सृजन होता है।
परिषद् की जनसंपर्क पदाधिकारी बीना गुप्ता के अनुसार गोष्ठी में सरिता कुमारी ने कविता ‘नदी के नीचे भी एक नदी बहती है। पत्थर से टकरा-टकरा कर
अकस्मात ही नीचे की ओर, उतर आती है नदी !’ सुनाई तो प्राकृतिक सुंदरता को बिखेरती हुई कवयित्री डॉ. सिंह ने ‘कश्मीर तो बस कश्मीर है, डल झील पर तैरता शिकारा, उसकी ओट से झांकती हुई वो खामोश सुबह।’ पेश की। ‘तेरे सवालों का जवाब मैं क्या दूं ?, अपने जख्म का हिसाब मैं क्या दूं ?’ ग़ज़ल का पाठ कर सिद्धेश्वर ने माहौल को यादगार कर दिया। महफिल में शामिल कवयित्री राज प्रिया रानी, अल्पना कुमारी, कृष्णानंद कनक, मधु रानी लाल, स्मिता पाराशर व डॉ. पंकजवासिनी ने भी कविता संग दोहे का पाठ कर माहौल माहौल बना दिया। डॉ. पंकजवासिनी की अध्यक्षीय उद्घोषणा एवं धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम की समाप्ति हुई।