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जीत एक लंबे संघर्ष की

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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तारीख पे तारीख,फिर तारीख,तारीख ही तारीख..२६५१ दिन(सात वर्ष तीन माह चार दिन)लम्बा यह तारीखों का सिलसिला २० मार्च की सुबह साढ़े ५ बजे तब थम गया,जब निर्भया के चारों दरिंदे हत्यारे फाँसी के फंदे पर चढ़ा दिए गए। १६ दिसम्बर २०१२ का वो काला दिन,जब गुनहगार उस ‘निर्भया’ का सम्मान नोंच रहे थे,तब उसकी चीखों से पूरा भारत सन्न रह गया था और सड़कों पर आक्रोश से उतर आया था। सलाम है निर्भया की माँ-पिता की हिम्मत को,जो इतने लंबे समय तक न्याय की लड़ाई लड़ते रहे,पर हार नहीं मानी। निर्भया की माँ के संघर्ष और हर हाल में न्याय पाने की दृढ़ ललक ने तो कानून को हिला कर एक नई इबारत ही लिख दी। फाँसी होने पर निर्भया की माँ ने कहा-यह न्याय की जीत है,आज का सूरज निर्भया के नाम। आज का दिन ‘निर्भया न्याय दिवस’ के नाम से जाना जाएगा।’
इस मामले में देश की जनता,निर्भया के परिजनों,वकीलों ने गजब की सहनशीलता का परिचय दिया। फाँसी होने से कुछ घंटे पहले तक दोषियों के वकील इसे टालने की कोशिश करते रहे। सवाल यह भी है क्या वकीलों का यह कदम न्याय को अन्याय में परिवर्तित करने का प्रयास नहीं था। देर भले ही हो,पर कानून पर ही भरोसा बने रहना बहुत जरूरी है।
निर्भया की माँ ने मजबूर हो कर ही तंत्र को दोषी करार दिया,जो अपराधियों को आखिरी हद तक मौका देता है। न्याय में इतना अधिक थका देने वाला इंतज़ार एक तरह से तो डरावने अन्याय से ही कम नहीं,न तो न्यायाधीश,न ही महज बहस कर,तारीख पर तारीख दिलाने की व्यवस्था करानेे वाले ये वकील कभी किंचित मात्र भी महसूस कर पाएंगे कि निर्भया की माँ पर क्या-क्या बीती ? वो हर बार तिल-तिल कर मरती रहीं,फिर जीने की जिजीविषा पैदा कर फिर तैयार होतीं रही। न्याय मिलने में इतनी अधिक लचर व्यवस्था के कारण ही कुछ माह पहले हैदराबाद के चारों बलात्कारियों के मुठभेड़ में मारे जाने का समाचार मिलने पर पूरे देश में खुशी व उल्लास का वातावरण छा गया था। ऐसे वीभत्स कांड के इतनी जल्दी पटाक्षेप ने जनमानस में आशा का संचार कर दिया था, पर यह तरीका तो हर बार अमल में लाया नहीं जा सकता। कभी-कभार ही हालात इस तरह का मोड़ ले लेते हैं,और फिर ऐसी मुठभेड़ या अन्य पर सवाल भी तो उठते हैं।
न्याय मिलने में इतने अधिक लंबे इंतजार से ऐसे में लोगों का न्याय व्यवस्था,प्रशासन से तो विश्वास उठना स्वाभाविक ही है। व्यवस्था बनाम तंत्र से नाउम्मीदी तो अराजकता ही बढ़ाएगी। आम जनता जल्द न्याय चाहती है, कानूनी प्रक्रिया से पर,समयबद्ध। आरोपियों की दोष स्वीकार्यता के बाद भी सालों-साल लग जाएं तो विश्वास तो डगमगाएगा ही। यह समाज,प्रशासन,व्यवस्था सबकी विफलता है। निर्भया के दोषियों में से १ ने आत्महत्या कर ली,४ को फाँसी हो गई। १ नाबालिग होने के कारण मात्र ३ साल की सजा काट आज वो दरिंदा खुला घूम रहा है। इसी नाबालिग ने उस निर्भया के नाजुक अंगों पर बर्बरता से चोट पहुंचाई थीं। दोषी की निर्ममता को देख कर ही नाबालिग को लाभ मिलने के कानून को बदलना चाहिए। क्या सिर्फ अपराधी को खत्म करने से अपराध खत्म होंगे ? हमें ऐसे अपराधियों की मानसिकता का अध्ययन कर उन कारणों की पड़ताल करनी होगी,जिसके कारण अपराधियों के मन में स्त्री देह के उपभोग की विकृत मानसिकता पनपती है और फिर उसे रोकने के उपाय तलाशने होंगे। वासना के क्षणिक भावावेश में अपराधी यह घिनौना कुकृत्य कर बैठता है,जिससे पीड़िता का जीवन तो तबाह होता ही है,उसके परिजन भी असहनीय पीड़ा से गुजरते हैं..तो अपराधी अपने अन्जाम तक पहुंचने के साथ अपने परिजनों को भी शर्मनाक स्थिति में हमेशा के लिए डाल जाता है।
आज हम लड़की के आने-जाने,पहनावे, व्यवहार पर अंकुश रखतेे हैं,उनकी बाध्यताएं भी हैं,मर्यादा भी,पर लड़कों के लिए यह जरूरी क्यों नहीं। लड़की आठ बजे रात तक आए तो प्रश्नों के घेरे में,लड़का रात को एक बजे भी शराब पी कर आ रहा है तो कोई बात नहीं। कैसी विडंबना है ?…नारी की कोख से जन्मी मानव जाति नारी की ही दुश्मन,उसे नोंच खाने को तैयार।
सब अपनी अपनी रोटियां ही सेंकते हैं,जनता रूपी द्रौपदी की किसी को चिंता नहीं। दुर्योधन,दुःशासन हर तरफ भरे पड़े हैं,यहां तक कि यौन शोषण व बलात्कार के आरोपी रहे आज सांसद व विधायक भी हैं। हैदराबाद की घटना बस एक अपवाद ही बने,यदि सरकार में नैतिकता है तो जल्द से जल्द बलात्कार के मामलों का निपटारा एक से छह माह के भीतर निपटाने का सख्त कानून पारित कराए। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल ने इसी मुद्दे पर ७ साल पहले भी और अब भी आमरण अनशन किया था,पर इच्छाशक्ति के अभाव में झूठे आश्वासन ही मिलते हैं। ५ साल महिला व बाल कल्याण मंत्री रही मेनका गांधी ने क्या किया। महिला हो कर भी महिलाओं के दर्द को समझा ?
आज आवश्यक है कि,यौन शोषण व बलात्कार के आरोपियों का हर हाल में सामाजिक बहिष्कार हो,सख्त से सज़ा जल्द से जल्द हो,माँ-बाप भी ऐसी संतान से मुँह फेर लें,संपत्ति से बेदखल कर दें,तब ही समाज की दशा भी बदलेगी व दिशा भी। समाज की हालत आज बहुत बुरे,घोर अविश्वास एवं अत्यंत चिंताजनक दौर में पतन के गर्द में है। यदि प्रशासन व न्याय ऐसे ही पंगु रहे तो इससे भी ज्यादा भंयकर दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे।
अब तक मात्र ५ प्रतिशत फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट अस्तित्व में आईं हैं,कितनीं सीटें न्यायालय में नियुक्ति की बाट जोह रही हैं। ३ लाख से अधिक प्रकरण लंबित हैं। जब राम मंदिर के मामले की सुनवाई रोज हो सकती है तो दरिंदों के लिये क्यों नहीं !
भारत माता आज कराह रही है,चीत्कार कर रही है,कोई सुनने वाला जैसे है ही नहीं। दो तिहाई बहुमत के बाद भी इतनी विवशता, समझ नहीं आता क्यों ? जनता आखिर कब तक इंतजार करेगी ? आज हर सच्चा निष्ठावान हिंदुस्तानी उद्देलित,आक्रोशित है, खून के आँसू रो रहा है। ये आँसू विद्रोह में बदल कर तेजाबी हो जाएं,इससे पहले सम्भल जाओ,जनता की सुध ले लो। यही तख्त पर बिठाती है,यही तख्ता पलटती है। नारी की अस्मिता की रक्षा करना तुम्हारा दायित्व है,नारी के अंदर दुर्गा,सीता,सावित्री, लक्ष्मी भी है और लक्ष्मीबाई भी,जो अंग्रजों से अकेली भिड़ गई थी। अब हर महिला को अपने अंदर की लक्ष्मीबाई को जगाना होगा, सबल बन अपना सम्बल स्वयं बनना होगा।अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को एकजुट हो कर सबक सिखाना होगा। ऐसे नरपिशाचों को पीटते-घसीटते हुए ले जा कर थाने में पटकना होगा,सिर्फ सरक-सरक कर चलती सरकारों के भरोसे कुछ नहीं होगा।
अभिभावकों को अपनी संतान के प्रति सचेत रहना होगा। आधनिकता के नाम पर खुली छूट कुछ भी गुल खिला देगी। बाद में हाथ मलते,पछताते रह जाओगे। नारी,कन्या पूजा के इस देश में दुष्कर्म वाली घटनाओं की बढ़ती अधिकता ने जनमानस को अंधेरे भविष्य के गर्त में डाल दिया है। अब समय आ गया है कि दुष्कर्मियों के साथ आतंकी वाला सलूक किया जाए। सख्त कानून, प्रशासन का भय और त्वरित न्याय जब तक नहीं होगा,तब तो ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ वाला हाल हो जाएगा।आज ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ अभियान के साथ साथ ‘बेटा पढ़ाओ,संस्कार सिखाओ’ अभियान की सख्त जरूरत है।

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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