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पत्ता टूट गया…

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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पत्ता टूट गया
अपनी शाख से,
अब क्या वह लहराएगा
क्या फिर अपनी टहनियों पर
पहुंच पाएगा।
पत्ता टूट गया…

यही रंग जीवन का है,
साँसें कब निकल जाएँ
जो फिर वापस नहीं आती हैं,
इसलिए इसे थामें
अपने अनमोल जीवन को पहचानें।
पत्ता टूट गया…

हवाओं के इस तूफान में,
वह ना जाने कहाँ खो जाएगा
ज़िन्दगी का हर एक लम्हा,
बहुत बहुमूल्य है
इसे जानें, इसे पहचानें।
पत्ता टूट गया,
अपनी साख से…
अब क्या वह लहराएगा!
क्या फिर अपनी टहनियों पर
पहुंच पाएगा…॥