एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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पत्थरों के शहर में तो,
कच्चे घर नहीं होते हैं
तजुर्बों के पहर में तो,
सच्चे डर नहीं होते हैं।
हसरतों की दुनिया में,
ये सब मौजूद होता है
रिश्तों की रूसवाईयों,
साथ बावजूद होता है।
इंसानी एहसास यह,
पत्थर जैसा होता है,
बेजान बुत भावहीन,
नश्तर जैसा होता है।
निगाहों की खामोशी,
ये सच बयां करती है
उदासी की बेबसियां,
ये कुछ कहां डरती है।
अपने घर की कलह,
फुरसत नहीं देती है।
मोहब्बत की आदत,
नफरत नहीं देती है॥