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परिवर्तन ही जीवन

प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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नया उजाला-नए सपने…

हमारा भारत देश अनेकता में एकता का देश कहलाता है। यहां अनेक जाति-धर्म के लोग रहते हैं। सभी अपने धर्म और मान्यताओं के अनुसार त्यौहार मनाते हैं। जैसे-मकर संक्रांति , होली, दीपावली, मुहर्रम, गुड़ी पड़वा आदि। सभी भारतीय होकर इन सभी त्योहारों का आनंद लेते हैं। एक उत्साह की तरह त्यौहारों को मनाते हैं। यहां कोई जात-पात का भेदभाव नहीं होता है। कहते हैं-“परिवर्तन ही जीवन है।“ अर्थात जीवन में बदलाव यानि परिवर्तन लाना जरूरी है। उसी प्रकार जैसे हर रोज सुबह सूरज की नई किरण एक नई रोशनी और एक नया जीवन हमें प्रदान करती है। ठीक उसी तरह हमें नए साल को एक बदलाव के रूप में स्वीकार कर बड़े हर्षोल्लास के साथ उसका स्वागत करना चाहिए। देश और हर राज्य अपनी मान्यताओं के अनुसार या भारतीय पंचांग के अनुसार नववर्ष मनाते हैं। जैसे-कहीं पर होलिका दहन के बाद नव वर्ष होता है, कहीं नए साल की शुरुआत मकर संक्रांति, तो गुड़ी पड़वा, पोंगल, लोहरी आदि से। भारत देश में खास बात यह है कि, भले ही दुनिया के सभी लोग अपने-अपने धर्मों एवं रीति-रिवाज के अनुसार अलग-अलग तरीके से नववर्ष मनाते हों, लेकिन १ जनवरी को सभी देशों में नए साल की धूम रहती है। ईसाई नववर्ष १ जनवरी से शुरू होता है। इस नव का स्वागत बड़ी धूमधाम से सभी लोग करते हैं। कहीं- कहीं २५ दिसंबर से १ जनवरी तक लोग अपनी सोसाइटियों में साँस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जैसे-गीत-संगीत, नृत्य खेलकूद आदि मनोरंजन पूर्ण कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। इसमें बूढ़े, जवान, बच्चे सब सहभागी होते हैं। उत्साह के साथ सभी लोग १ जनवरी को छोटे-बड़े एक-दूसरे के घरों में जाते हैं। पैर छूते हैं, आशीर्वाद लेते हैं, तो कोई आशीर्वाद देता भी है। यानि बड़े ही हर्षोल्लास के साथ इस नए वर्ष का स्वागत होता है। मुझे गर्व है इस हिंद से बने हिंदुस्तान पर।

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