हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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पृथ्वी दिवस विशेष…..

पता नहीं, समझ में नहीं आता कि यह अकल्पनीय बात कैसे, कब, दिमाग में आई कि ‘गर धरा ना होती तो…,’ क्या ? कुछ भी नहीं होता। या कुछ होता भी, तो आसमान के नीचे हवा में झूल रहा होता, क्योंकि धरा के नहीं होने से गुरुत्वाकर्षण शक्ति तो होती ही नहीं, फिर बात हवा की है। शायद ये भी नहीं होती। और यदि हवा नहीं होती तो जीवन कहाँ होता, क्योंकि जीवन को तो साँसों के लिए हवा चाहिए ही।
अब मन सोच रहा है ‘प्रभुजी’ की, क्योंकि जीवन के बिना तो सुख-दुख भी नहीं होते। और ये नहीं होते, विशेष कर दु:ख, तो प्रभुजी को याद कौन करता। दुखों को विशेषता इसलिए दी, क्योंकि दु:ख में जब कोई सहारा नहीं होता तब प्रभुजी को ही याद किया करता है। अतः ये कहना गलत नहीं होगा कि धरा ना होती तो शायद कुछ भी नहीं होता, क्योंकि प्रभुजी के बिना होता क्या है ? कुछ भी नहीं।
हाँ…परिस्थितियों की बात बहुत जरुरी है, क्योंकि उपरोक्त में एक महत्वपूर्ण बात चिन्तनीय है कि इन उपरोक्त परिस्थितियों में मेरा क्या होता ? दाता (प्रभुजी), मात-पिता, परिचित, सभी-साथी गण से जो इतने सुखों की देन है, जब कुछ नहीं होता, तो कहाँ।
खैर…, जब कुछ भी नहीं, तो सब कुछ खत्म। बात ही क्या ? अतः जहाँ कुछ भी नहीं, उसकी कल्पना क्यों।
परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।