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पर्व सिखाता हिल-मिल रहना

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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जीवन के रंग (मकर संक्रांति विशेष)…


कितना प्यारा पर्व सिखाता हिल-मिल रहना,
मकर राशि का सूर्य सिखाता सदा निखरना।

सपनों का आकाश है विस्तृत पर फैलाओ,
बाँध प्यार की डोरी ऊँचे उड़ते जाओ
पावन है ये पर्व प्यार सबसे है करना,
कितना प्यारा पर्व सिखाता हिल-मिल रहना।

चलें धर्म अनुकूल शास्त्र ये हमें सिखाते,
मुक्त हस्त दें दान और सुरसुरी नहाते
बड़े-बड़े ऋषि मुनियों का भी यही है कहना,
कितना प्यारा पर्व सिखाता हिल-मिल रहना।

संक्रांति का पर्व हमेशा देता ये सौगातें,
सबसे मिलकर गले प्यार से मीठी बोलें बातें
धर्म सनातन संस्कृति कहती भूल कभी न करना,
कितना प्यारा पर्व सिखाता हिल-मिल रहना।

आओ सब मिल सपनों को परवान चढ़ाओ,
पंख लगा कर हिम्मत के परवाज़ लगाओ
निडर साहसी बनो नहीं किसी से डरना,
कितना प्यारा पर्व सिखाता हिल-मिल रहना॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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