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पापा की गुड़िया

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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मैं पापा की नन्हीं गुड़िया,
घर में सबकी प्यारी गुड़िया
सबके कंधों पर झूला करती,
पापा कभी न छोड़ें मुझको।

कंधे पर लेकर के घूमें,
कहा किसी ने था यह उनको
धरती पर मत लाओ इसको,
पापा कहते बेटी मेरी भाग्य है।

बेटी मेरी भाग्यलक्ष्मी है,
मुझ पर कोई बोझ नहीं है
मेरी प्यारी प्यारी बिटिया,
आगे दो परिवारों को जोड़ेगी।

पढ़-लिख करके बड़ी बनेगी,
और देश का भाग्य लिखेगी
वह तो होगी देश की मेरे,
सबसे अच्छी भाग्य विधाता।

बिटिया से ही होती घर में,
रौनक और खुशहाली हरदम।
बिटिया ही तो होती है,
संस्कारों की सच्ची निर्माता॥