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पाप का बाप है लोभ

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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वर्तमान में अधिकांश लोग शिक्षित और चतुर हैं,और उनके साथ धोखा देने वाला उनसे अधिक होशियार और मूर्ख बनाने वाला होगा। आज जब यह समाचार पढ़ा,तब समझ में आया कि,हम सब लोग लोभ के वशीभूत उनके चंगुल में फंसते हैं। आज सरकारी बैंक आपके जमा पैसों को वापिस नहीं कर रहा है,तब निजी व्यवसायियों और कम्पनी पर कितना भरोसा कर सकते हो।
अपना धन दूसरों को सौंपना और फिर यह भरोसा करना कि वह वापिस करेगा,वह भी अधिक लाभ के साथ यानी यह निरी मूर्खता है। यह सही है कि पहले विश्वास पैदा करने के लिए वह आपको लाभ देगा। इससे उसके चक्रव्यूह में आप कब-कैसे फंस जाते हैं,पता ही नहीं लगता है। आप उस समय अपने किसी विश्वासी पर विश्वास नहीं करते और ठगने के बाद फिर रोते क्यों ?
दरअसल,इसमें हमारी लोभ वृत्ति का मूल कारण होता है। जैसे घरों- घर दुगना सोना करने वाले,गहनों की सफाई वाले,सस्ते में सोना देने वाले हमेशा धोखा देते हैं,और हम लोभवश उनके चंगुल में फंसते हैं। आज दिन- रात मोबाइल के माध्यम से धोखाधड़ी के मामलों से आगाह किया जाता है,उसके बाद भी हम उनके जाल में फंस जाते हैं। ऐसा ही मामला पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (पीएमसी)बैंक घोटाले के बाद महाराष्ट्र में एक और बड़े घोटाले के रुप में एक ज्वेलरी स्टोर के बंद होने के बाद हजारों लोगों की हालत खराब होने का है। दरअसल,इन लोगों ने इस स्टोर की स्थाई जमा तथा स्वर्ण योजनाओं में भारी-भरकम निवेश कर रखा है,लेकिन स्टोर के मालिक कई दिनों से दुकानें बंद कर फरार हैं। अब पुलिस ने स्टोर्स के मालिकों के आवास बन्द मिलने पर शो-रूम को सील कर दिया है।
ऐसे धोखेबाज़ लोग अपने कागजात ऐसे तैयार करते हैं,जिसमे आपको अपना भविष्य उज्जवल दिखाई देता है,पर उसके पीछे कितनी कुरूपता छिपी होती है,जब उनका काण्ड उजागर होता है। जब बैंकों में धोखाधड़ी हो रही है तो ऐसे लोगों से कौन सुरक्षित रहेगा।
‘चाणक्य’ ने भी लिखा है कि-“अपना धन दूसरों को देना यानी जीते-जी नरक के समान है।” कोई कितना भी भरोसे वाला हो,वही धोखा देता है,और उसके पहले हम लोभ के वश में फंसते हैं। इसीलिए,कहा गया है कि, लोभ पाप का बाप होता है। इसके कारण सब दुखी होते हैं।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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