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कश्मीर में हिंसा…शुद्ध कायरता

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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कश्मीर के हाल देखने के लिए इधर से २३ यूरोपीय सांसद श्रीनगर पहुंचे और उधर कुलगाम में आतंकवादियों ने ५ मजदूरों की हत्या कर दी। इस खबर के आगे मोदी की सउदी यात्रा और बगदादी की हत्या की खबर फीकी पड़ गई। यूरोपीय सांसदों का कश्मीर-भ्रमण भी अखबारों के पिछले पृष्ठों पर सरक गया। जो लोग मारे गए,वे कौन थे ? वे सब बांग्लादेशी और मुसलमान थे। मुर्शिदाबाद के निवासी इन मजदूरों का राजनीति से क्या लेना-देना,लेकिन आतंकवादियों ने इन्हें मार गिराया। यह कौन-सी बहादुरी है ? यह तो शुद्ध कायरता है। निहत्थे मजदूरों को मारने वालों को कौन-सी जगह मिलेगी,जन्नत या दोजख (नरक) ? इन हत्यारों को आप क्या कहेंगे ? क्या वे जिहादी हैं ? उन्हें पता नहीं कि उनकी यह हरकत,यह बेवजह तशद्दुद (अकारण हिंसा) किसी भी काफिराना हरकत से कम नहीं है। ये दहशतगर्द लोग कश्मीरी आवाम के घोर शत्रु हैं। कश्मीर के हालात धीरे-धीरे ठीक हो रहे थे,लेकिन अब सरकार को भी सोचना पड़ेगा कि सारे प्रतिबंध इतनी जल्दी हटा लेना ठीक है या नहीं ? इन आतंकवादियों ने भारत सरकार के हाथ में नई बंदूक पकड़ा दी है। ये लोग पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि बिगाड़ने के लिए भी जिम्मेदार हैं। ये समझ रहे हैं कि ये हत्याएं करके वे यूरोपीय सांसदों को भारत के दावों के बारे में एक निषेधात्मक संदेश दे सकेंगे,लेकिन कश्मीर में उनकी उपस्थिति में ये हिंसा उन्हें (और पाकिस्तान को भी) बदनाम किए बिना नहीं रहेगी। यूरोपीय सांसदों से उम्मीद थी कि वे कश्मीर के हालात के बारे में अपनी निष्पक्ष और निडर राय देंगे लेकिन अब जरा सोचिए कि इन हत्याओं का उनके मन पर क्या असर पड़ेगा। यदि कश्मीरी लोग शांति और सदभावना का रास्ता पकड़ेंगे तो भारत सरकार ही नहीं,भारत के करोड़ों लोग उनके अधिकारों,सुविधाओं और सम्मान के लिए जी-जान लगा देंगे। वरना,कश्मीर का यह आपातकाल बढ़ता ही चला जाएगा और उसका मामला उलझता ही चला जाएगा।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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