श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
*******************************************
जीना जैसे पिता…
‘पिता’ पिता होते हैं, यदि ‘पिता’ नहीं तो हम नहीं,
‘पिता से ही संसार है, और नहीं तो कुछ भी नहीं।
‘पिता’ उंगली पकड़कर चलना हमें सिखाए हैं,
‘पिता’ गुरु समान शिक्षा देकर बड़ा हमें बनाए हैं।
‘पिता’ का स्थान नीले आसमान से भी ऊँचा है,
जिसे हमने बचपन में, कभी भी नहीं सोचा है।
‘पिता’ माँ की चूड़ी, सिन्दूर, बिंदी, सोलह सिंगार है,
यदि पिता नहीं हैं तो माँ का, सब सिंगार बेकार है।
‘पिता’ का प्यार-आशीष, बरगद की छाँव जैसा है,
पिता की छत्रछाया तले, शहर-गाँव एक जैसा है।
‘पिता’ बेटा हो या बेटी, सबको समान प्यार करते हैं,
जिनके पिता नहीं हैं, वो प्यार के लिए रोते रहते हैं।
‘पिता’ साइकिल में बैठाकर, हमें बाजार ले जाते थे,
निर्धन होकर भी गुब्बारे देकर, हमें बहुत हॅंसाते थे।
‘पिता’ जिनके जीवित हैं, ओ मनुष्य खुशनसीब है,
बच्चा हो या वृद्ध हो, जिनके पिता नहीं हैं, वो बदनसीब हैं।
‘पिता’ को श्री गुरु भगवान जैसा, भारतवासी मानते हैं,
‘पिता दिवस’ में अपने, और सबके पिता को नमन करते हैं॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है