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प्यासा कौआ

ममता बनर्जी मंजरी
दुर्गापुर(पश्चिम बंगाल)
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प्यास लगी थी इक कौए को,
ढूँढ रहा था पानी।
उसने दिनभर पानी खातिर,
चहुँओर खाक छानी।
हाँफ रहा था कौआ थक कर,
आ गई याद नानी।
नज़र पड़ी जब इक मटके पर,
कम हुई परेशानीll

मगर बहुत अफसोस हुआ जब,
उसने मटका देखा।
मटके के नीचे थी बिल्कुल,
पानी सीमा रेखा।
हाय! विधाता यह है कैसा,
आज भाग्य का लेखा ?
तनिक सोच कर कौए ने फिर,
धरती बीच निरेखा।

नज़र पड़ी कौए की बरबस,
कुछ कंकड़-पत्थर पर।
चमक उठी आँखें आशा से,
मिला उसे यूँ अवसर।
देर किए बिन कौए ने अब,
फैलाए अपने पर।
झट-पट धरती पर आ उतरा,
मटकाया अपना सरll

प्यासे कौए ने सुध-बुध से,
हल भी खोज निकाला।
पकड़ चोंच से इक-इक कंकड़,
मटके पर यूँ डाला।
पानी की सीमा रेखा जब,
ऊपर उठ के आला।
प्यास बुझाई कौए ने तब,
जग में बना निरालाll

परिचय-ममता बनर्जी का साहित्यिक उपनाम `मंजरी` हैl आपकी जन्मतिथि २१ मार्च १९७० एवं जन्म स्थान-इचाक,हज़ारीबाग (झारखण्ड) हैl वर्तमान पता-गिरिडीह (झारखण्ड)और स्थाई निवास दुर्गापुर(पश्चिम बंगाल) हैl राज्य झारखण्ड से नाता रखने वाली ममता जी ने स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की हैl आप सामाजिक गतिविधि में कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़कर नियमित साहित्य सृजन में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल,लेख सहित साहित्य के लगभग सभी विधाओं में लेखन हैl झारखण्ड के झरोखे से(२०११) किताब आ चुकी है तो रचनाओं का प्रकाशन अखबारों सहित अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं में भी हो चुका हैl आपको साहित्य शिरोमणि, किशोरी देवी सम्मान,अपराजिता सम्मान सहित पूर्वोत्तर विशेष सम्मान और पार्श्व साहित्य सम्मान आदि मिल चुके हैंl विशेष उपलब्धि में झारखण्ड प्रदेश में एक साहित्य संस्था का अध्यक्ष होना और अन्य में भी पदाधिकारी होना हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी को आगे बढ़ाना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-झारखण्ड का परिवेश हैl आपकी विशेषज्ञता-छंदबद्ध कविता लेखन में हैl