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साधारण सदस्य करें कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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कांग्रेस-जैसी महान पार्टी कैसी दुर्दशा को प्राप्त हो गई है ? उसकी कार्यसमिति जैसी अंधी गुफा में आजकल फंसी हुई है,वैसी वह सुभाषचंद्र बोस और पट्टाभिसीतारमय्या तथा नेहरु और पटेल की टक्कर के समय भी नहीं फंसी थी। उस समय महात्मा गांधी थे। सही या गलत,जो भी उन्हें ठीक लगा,वह रास्ता उन्होंने कांग्रेस के लिए निकाल दिया,लेकिन राहुल गांधी के बाल हठ ने कांग्रेस की जड़ों को हिला दिया है। कांग्रेस के सांसद और कई प्रादेशिक नेता रोज-रोज पार्टी छोड़ने का ऐलान कर रहे हैं। डर यह लग रहा है कि यही दशा कुछ माह और भी खिंच गई तो कहीं कांग्रेस का हाल भी राजाजी की स्वतंत्र पार्टी,करपात्रीजी की रामराज्य परिषद,लोहिया जी की समाजवादी पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की तरह न हो जाए। भारतीय लोकतंत्र के लिए यह अत्यंत चिंताजनक चुनौती होगी। अभी कांग्रेस की बड़ी समस्या यह है कि उसका अध्यक्ष किसे बनाया जाए ? राहुल गांधी का अपने इस्तीफे पर डटा रहना दो बातों का सबूत लगता है। एक तो यह कि यह युवा नेता काफी पानीदार है, स्वाभिमानी है। जिस बात पर अड़ा,उसी पर अड़ गया। उसके सपनों का महल ध्वस्त होते ही वह भी बिखर गया। दूसरा,यह भी कि राहुल अभी भी अपरिपक्वता का शिकार है। इस युवा नेता को शायद इस बात का अंदाज नहीं है कि चुनाव-अभियान का समापन होने तक उसकी छवि निरन्तर बेहतर होती चली जा रही थी। साक्षात्कार देने के मामले में वह नरेन्द्र मोदी से ज्यादा दमदार दिखाई देने लगी थी। यदि राहुल रणछोड़दास की भूमिका की बजाय रणेन्द्र की भूमिका में रहते तो,शायद कांग्रेस में कुछ जान पड़ जाती। बेचारे कांग्रेसियों की हालत आज इतनी गई-बीती है कि कोई नेतागीरी का झंडा थामने के लिए सामने नहीं आना चाहता है। उसका नाम ही है एन.सी. याने नौकर-चाकर कांग्रेस,तो उन्होंने अपनी बंदूकें अपनी पुरानी मालकिन के कंधों पर रख दी हैं। सोनिया जी अपनी सेहत का ख्याल रखें या कांग्रेस की ? कांग्रेस पार्टी हिम्मत करे तो सुझाव है कि,वह अपनी कार्यसमिति को अ-कार्यसमिति घोषित कर दे। पार्टी-अध्यक्ष का चुनाव या तो पार्टी के सभी साधारण सदस्य करें,या अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी करे। जो भी लोकप्रिय और दमदार नेता होगा, पार्टी उसे चुन लेगी। वह कोई राहुल से भी युवा और सोनिया जी से भी ज्यादा बुजुर्ग हो सकता है। कांग्रेस में दर्जनों श्रेष्ठ और अनुभवी नेता हैं। वे चाहें तो कांग्रेस को एक सच्ची लोकतांत्रिक पार्टी बना सकते हैं। इस समय देश को एक मजबूत,परिपक्व और जिम्मेदार विपक्ष की बहुत जरुरत है। उसके बिना भारत एक बिना ब्रेक की मोटर कार बनता चला जाएगा।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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