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प्रकृति और प्रेम

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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प्रकृति ही प्रेम, प्रेम ही प्रकृति है,
यही हमारे जीवन की संस्कृति है।

नर-नारी प्रकृति की श्रेष्ठ रचना है,
यही हमारे धर्मग्रंथों का कहना है।

बनती है ये सुंदर-सी पावन सृष्टि,
मिलती नर-नारी की पावन दृष्टि।

प्रेम ही पूजा है, प्रेम ही इश्वर है,
प्रेम ही सृष्टि है, प्रेम ही परमेश्वर है।

दो पवित्र आत्माओं का मेल प्रेम,
सृष्टि की अनमोल धरोहर है प्रेम।

प्रेम शाश्वत है, प्रेम ही चिरंतन है,
प्रेम का चिंतन बहुत ही गहन है।

किसको, कब किससे प्रेम हो जाए,
बात आज तक समझ नहीं आए।

प्रेम ही प्रकृति का अनुपम वरदान,
एक-दूजे को समझने का अवदान।

प्रेम बिना है ये सुंदर प्रकृति अधूरी,
प्रेम बिना हैं अधूरे हम सब नर-नारी।

बादल अच्छादित रक्ताभ नील गगन,
निर्मल चाॅंदनी में मिले पवित्र तन-मन।

ये सृष्टि चलती रहे लगाता‌र व निरंतर,
हम प्रेम-बंधन में बंधें रहें बन दिलवर॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।