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प्रकृति माँ को बचाओ

प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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प्रकृति और खिलवाड़…

आज से कई हजार वर्ष पूर्व हमारे देश के आचार्य और ऋषि-मुनियों ने प्रकृति से ही औषधियों की खोज की थी। पीपल, तुलसी, नीम आदि यह सब माँ प्रकृति की ही देन है। प्राचीनकाल में विज्ञान ने इतनी तरक्की नहीं की थी कि, हम बीमारियों को आसानी से ठीक कर सकें, तब हम पेड़-पौधों से जड़ी- बूटियों से ही बीमारियों का निदान किया करते थे। जैसे तुलसी, नीम, पीपल, अशोक, जाई, गुलाब और मोगरा यह सभी पौधे जड़ी- बूटियों अर्थात औषधि का काम करते थे। यह हमारी प्रकृति माँ की देन थी।
प्रकृति माँ हमारी संस्कृति है, जो सदियों से पूजनीय है। सभी जानते हैं कि, हमारा भारत अनेकता में एकता का देश कहलाता है, क्योंकि यहां विविध धर्म-जाति के लोग रहते हैं। सभी की अपनी रीति-रिवाज और परम्पराएं हैं, जिसका सभी पालन करते हैं। प्रकृति द्वारा ही आज हम अपनी संस्कृति से जुड़े हुए हैं। जैसे महाराष्ट्र में वटवृक्ष की पूजा की जाती है, जिसमें सभी स्त्रियां एकत्रित होती हैं, गीत गाती हैं। सभी सुहागिन एक- दूसरे को टीका करती हैं। ऐसे ही उत्तर भारत में नीम के पेड़ की पूजा की जाती है, जहां मान्यता है कि नीम के पेड़ में देवी का वास होता है, और पीपल में भगवान विष्णु का वास होता है, इसलिए पीपल की भी पूजा की जाती है। ऐसे बहुत से पेड़-पौधे हैं जो पूजनीय और प्रकृति की ही देन हैं।
आज मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि, अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रकृति यानि माँ का विनाश कर रहा है। पेड़-पौधों को हटाकर बड़ी-बड़ी इमारतें और बड़े-बड़े मॉल बनाए जा रहे हैं। भौतिक वस्तुओं के लिए प्रकृति और स्वयं का भी विनाश कर रहा है। जैसे-जैसे आधुनिकता बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे लोगों की मानसिकता भी बदलती जा रही है। यह बदलाव अच्छा है, परंतु इसके साथ-साथ कुछ चीजों को संभाल कर रखने की आवश्यकता है। प्रकृति को हमें बचाना है, पेड़-पौधों को काटना नहीं है, जिसके द्वारा हमें स्वच्छ और शुद्ध हवा प्राप्त होती है, जिससे हम खुली साँस ले सकते हैं।
पृथ्वी पर लगातार हो रहे बदलाव के कारण पर्यावरण दूषित होता जा रहा है। जीव-जंतुओं की हत्या हो रही है। प्राणियों के रहने का स्थान है जंगल अर्थात पेड़-पौधे, जब यह ही नहीं होंगे तो क्या होगा उन प्रजातियों का ? हम अपने आसपास देख सकते हैं कि, धरती पर जीवन को सहारा देने वाले अहम तत्व गंभीर स्थितियों में है। मई २०१९ में ग्लोबल एसेसमेंट ने बताया कि, दुनियाभर में करीब १० लाख जीव-जंतुओं और पौधों की प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर है। ऐसा पाया गया कि, जो हमारी प्रकृति की शोभा है हरियाली, उसमें जीव-जंतु जीव जंतुओं द्वारा ही किसानों को उत्तम दर्जे का खाद प्राप्त होता है। यह जमीन से मिलता है, यानि किसानों की खेती अच्छी होती है।
आज विविध संसाधनों की उपयोगिता इतनी बढ़ गई है कि, पर्यावरण दूषित होता जा रहा है और जीव-जंतुओं का भी विनाश हो रहा है। प्रकृति का विनाश हो रहा है, अर्थात पृथ्वी से जीवन का विनाश, जो हमें रोकना अति आवश्यक हो गया है। अधिक से अधिक पेड़- पौधों को लगाना, अपनी भौतिक वस्तु की उपयोगिता को कम से कम उपयोग में लाना और लोगों को अधिक से अधिक जागृत करना होगा। आने वाली युवा पीढ़ियों को हमारी संस्कृति से परिचित कराना अति आवश्यक है, क्योंकि प्रकृति ही हमारी संस्कृति है, जो हमें बचाना है-
आज का नारा है यह नारा,
घर-घर यह संदेश पहुंचाओ।
प्रकृति माँ को बचाओ,
पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ॥

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