डॉ.पूजा हेमकुमार अलापुरिया ‘हेमाक्ष’
मुंबई(महाराष्ट्र)
*********************************************************
पुस्तक समीक्षा…

सूरज की पहली किरण के आगमन से ही धरा चिड़ियों की चहचहाहट, पशुओं के कलरव, पेड़-पौधों की हरियाली, फूलों की सुगंध, शांति, नव ऊर्जा, सुंदरता, ओज, सकारात्मकता आदि से दमक उठती है। काली विकट रात्रि के उपरांत जिस प्रकाश की गोद में पृथ्वी फलती-फूलती दृष्टिगोचर होती है, उसी नयी ऊर्जा और संजीवनी शक्ति का नाम है ‘श्रीप्रभात।’
‘श्रीप्रभात (चित्र कविताएँ)’ काव्य संग्रह सुप्रसिद्ध हिंदी- मराठी साहित्यकार तथा आकाशवाणी में बतौर उद्घोषिक कांचन प्रकाश संगीत का अनूठा चित्रात्मक काव्य संग्रह है। कांचन जी ने अपनी कविताओं को सचित्र प्रस्तुत करने का अनूठा प्रयास किया है। आमतौर पर हमने चित्रकथा, चित्रगीत आदि यही सुना और पढ़ा था, पर ‘चित्र कविता’ एक अलग विधा है।
कवयित्री की आधुनिक एवं रचनात्मक कल्पनाशीलता का प्रभाव संग्रह पर स्पष्ट दिखाई देता है। लेखिका ने प्रतिदिन १ चित्र के साथ १ कविता के उपक्रम में विषयों की विविधता को सहजता से ढाला है। यह कल्पना की श्रृंखला है, विषय की नहीं है। प्रत्येक कविता अपने शब्दों और अर्थ के आधार पर तो गूढ़ता प्रदान करती ही है, लेकिन उनसे जुड़े चित्र काव्य सौंदर्य में चार चाँद लगा रहे हैं। कवयित्री ने संग्रह में १७६ कविताओं में, जैसे-जल, थल, वनस्पति, राष्ट्र, बाहर-भीतर, अनुज-अग्रज आदि सभी विषयों को समेटने का प्रयास किया है। यदि कहा जाए- ‘श्रीप्रभात’ गागर में सागर है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
संग्रह को मिठास, कुछ अपने भी झिलमिल रंग, उपासी बिल्ली, मानूँगा नहीं हार मैं, तिनका-तिनका आदि विषयों से सजाया गया है। कवयित्री ने प्रयोगवादी विचारों की धरा पर अपनी सभी कविताओं को रचा है। उनके अथक प्रयास और शब्दों की नाविन्यता काव्य पंक्तियों में द्रष्टव्य होती है। ‘फिर मिलेंगे’ कविता में लिखती हैं-
“आते-जाते
मन करता है
सुस्ता ले कुछ लम्हें साथ
कर ले अपने दिल की थोड़ी
ठेठ अंदरूनीऽ मोम-सी बात!”
जल स्रोतों के दूषित होने और स्वच्छ पानी के अभाव में चिड़ियों को सड़कों पर वाहनों के धोने के उपरांत उभरे दूषित तालाब में ही स्नान करना पड़ता है। ‘छह चिरैया’ कविता में कांचन जी लिखती हैं कि,-
“धुलती हैं भई रोज गड्डियाँ!
तब बनती है उथली तलैया!
इत्ता बित्ता, पानी कित्ता ?
गौरय्या नहाए जित्ता
झम्मा झमकझम ताता थैय्या!”
ऐसे ही ‘पाखी अम्बरनील’ में कवयित्री हिम, गगन और नैन की समानता व्यक्त करते हुए बहुत ही सुंदर शब्दों में लिखती हैं-
“हिमश्वेत मैं
अम्बरनील
नैन मेरे दो
नन्हीं झील!”
बतौर उद्घोषिका इनके श्रोताओं से वार्तालाप करने के अनुभवों के कारण बात कहने का अंदाज भी अनूठा ही है। पाठकों के समक्ष व्यंग्य को धीरे से सरकाने के अंदाज में वे लिखती हैं-
“अरे न मैं कवि हूँ, न शायर,
न लेखक न नाटककार,
न कलाकार न…
यकीन मानो इस मोड़ पे आया हूँ,
कुछ पल सुस्ताऊँगा,
चुस्त-दुरुस्त महसूस करूँगा
उड़ जाऊँगा!
ये प्रकृति का बीज गणित है…
सरकार तो नहीं, सर दिखते हैं अनगिनत,
प्रकृति के हत्यारे सिरफिरे सारे…।”
कांचन जी के काव्य में धीरता, गंभीरता, भाव- प्रधानता, प्रतीकात्मकता आदि के दर्शन होते हैं। कवयित्री ने शब्दों और भावों को गहनता प्रदान करने के लिए अपने आपको उन भावों के आईने में उतरकर जिया है, तभी इतना सुगम और सौम्य संग्रह रचा है। संग्रह के लिए मुम्बई के राकेश जोशी, कमलेश पाठक तथा वर्धा के कौशल मिश्र द्वारा शुभकामना संदेश प्रेषित किए गए हैं। कविताओं की भाषा सरल, सहज, सुगम और लययुक्त है। संग्रह रंगीन एवं आकर्षक है। पुस्तक में कई स्थानों पर विराम चिन्हों सहित संयुक्त शब्द, अनुस्वार तथा अनुनासिक की त्रुटियाँ पाई गई हैं।
आशा है, भविष्य में भी पाठक आपके साहित्य से यूँ ही लाभान्वित होते रहेंगे। आपकी लेखनी यूँ ही गतिमान रहे। कांचन जी को अद्भुत लेखन हेतु बधाई।
परिचय–पूजा हेमकुमार अलापुरिया का साहित्यिक उपनाम ‘हेमाक्ष’ हैl जन्म तिथि १२ अगस्त १९८० तथा जन्म स्थान दिल्ली हैl श्रीमती अलापुरिया का निवास नवी मुंबई के ऐरोली में हैl महाराष्ट्र राज्य के शहर मुंबई की वासी ‘हेमाक्ष’ ने हिंदी में स्नातकोत्तर सहित बी.एड.,एम.फिल (हिंदी) की शिक्षा प्राप्त की है,और पी.एच-डी. की शोधार्थी हैंI आपका कार्यक्षेत्र मुंबई स्थित निजी महाविद्यालय हैl रचना प्रकाशन के तहत आपके द्वारा आदिवासियों का आन्दोलन,किन्नर और संघर्षमयी जीवन….! तथा मानव जीवन पर गहराता ‘जल संकट’ आदि विषय पर लिखे गए लेख कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैंl हिंदी मासिक पत्रिका के स्तम्भ की परिचर्चा में भी आप विशेषज्ञ के रूप में सहभागिता कर चुकी हैंl आपकी प्रमुख कविताएं-`आज कुछ अजीब महसूस…!`,`दोस्ती की कोई सूरत नहीं होती…!`और `उड़ जाएगी चिड़िया`आदि को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्थान मिला हैl यदि सम्म्मान देखें तो आपको निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार तथा महाराष्ट्र रामलीला उत्सव समिति द्वारा `श्रेष्ठ शिक्षिका` के लिए १६वा गोस्वामी संत तुलसीदासकृत रामचरित मानस पुरस्कार दिया गया हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा में लेखन कार्य करके अपने मनोभावों,विचारों एवं बदलते परिवेश का चित्र पाठकों के सामने प्रस्तुत करना हैl
