डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
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“सक्सेना साहब! इन दिनों जब भी प्रोफेसर सुशील कुमार मिलते हैं तो घर जरूर बुलाते हैं।”
“मुझे मालूम है कि वह क्यों बुला रहे हैं ?”
“क्यों शर्मा जी…?”
“… अभी उन्होंने ५०-६० लाख का नया फर्नीचर बनवाया है। वह उसी को दिखाने के लिए सभी को आमंत्रित किया करते हैं। मुझे भी कई बार बोल चुके हैं।”
“चलिए… हम दोनों भी किसी दिन उनका फर्नीचर से सजा घर देख आते हैं।”
“उनके घर जाने का मन नहीं करता !”
“क्यों भाई क्यों…?”
“कुछ दिनों पहले उनके साथ काम कर रहे प्रोफेसर मिले थे। वह बता रहे थे कि इन दिनों उनका धंधा अच्छा चल रहा… ३० लाख की गाड़ी में घूमते हैं… महंगी-महंगी पोशाकें पहनते हैं। इस साल उन्होंने दो विद्यार्थियों को… पी-एच.डी. कराई। उनमें से एक नेता है और एक पैसे वाले घर की औरत…! दोनों न शुद्ध हिंदी बोल पाते हैं और ना ही लिख पाते हैं!”