कुमारी ऋतंभरा
मुजफ्फरपुर (बिहार)
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हर किसी से, बातें करना भी बेकार है।
बेकार पास में बैठना भी बेकार है।
शब्द से शब्द मिलते नहीं अगर,
फिर तो बात बढ़ाना भी बेकार है।
जो किसी के दर्द को मिटा ना सके,
ऐसा रिश्ता निभाना भी बेकार है।
साथ रहकर भी साथ ना समझ सके,
फिर तो साथ बैठना भी बेकार है।
मन में दुश्मनी दबी हो कोई,
तो फिर अपनापन दिखाना भी बेकार है।
आशिकी में मिले दर्द मुझको इस तरह,
दिल किसी से लगाना भी बेकार है।
जब अपने, अपना समझते ही नहीं मुझको,
फिर तो अपने दर्द का हाल बताना भी बेकार है।
खुश हूँ बहुत मैं अपनी ज़िंदगी में,
किसी का साथ पाना अब बेकार है॥