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बरखा तुम कब जाओगी ?

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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गणपति आखिर विदा हो गए,
बरखा तुम कब जाओगी ?
अब तो हद-पार अति हो गई,
कब तक हमें सताओगी।

मानसून में रिमझिम-रिमझिम,
हमको प्यारी लगती हो।
आषाढ़ी कृषक की,सावन में,
बहन हमारी लगती हो।

तुम्हें मनाने-तुम्हें बुलाने,
जाने कितने जतन किए।
देर से ही तुम आई भले पर,
जलद घटाएं साथ लिए।

धरती तुमने तृप्त ही कर दी,
भू जल लाई उबार के।
जंगल,खेत सब हरित हुए हैं,
अब आए दिन बहार के।

ताल,तलैया,नदी,बांध सब,
तुमने सबको पानी दिया।
धरती पर अमृत बरसा कर,
हरण सभी का दु:ख है किया।

सावन-भादो गुजर गए अब,
कार्य तुम्हारा पूर्ण हुआ।
कोटा जल का,थल को भरकर,
आँचल अब संपूर्ण हुआ।

कमी पानी की पूरी हो गई,
अब पानी ना बरसाओ।
समय तुम्हारा पूरा हो गया,
अब अपने तुम घर जाओ।

चारों तरफ बस पानी-पानी,
जीना अब मुहाल हुआ।
मानव अब पानी से बेबस,
पानी-पानी हाल हुआ।

घर-घर में कोहराम मचा है,
जलप्रलय घमासान हुआ।
नदियों ने भी सीमा तोड़ी,
रहना ना आसान हुआ।

आशा है तुम विनती हमारी,
अब तो मान ही जाओगी।
जाकर अपने घर को अब तुम,
अगले बरस फिर आओगी॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|

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