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बलिदानी क्या सोचेंगे ?

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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ओ पदवी के सब चाहवानों! अब तो पदवी का मोह छोड़ो,
अपनी गलती का ठीकरा प्यारों, दूसरों के सर पर न फोड़ो।

देश हमारा, हम सब हैं इसके, ध्रुवीकरण से इसे मत तोड़ो,
खैर जो चाहते हैं गर अपनी तो, जर्रा-जर्रा देश का जोड़ो।

रोप के पौधा आजादी का, पल्ल्वित पुष्पित कर जो चले गए,
क्या बीतेगी दिल पर उनके ? देखे सपने जो उनके छले गए।

जाति-धर्म की बाट कहां जोही ? समता ही जिनका स्वप्न रहा,
विषमता विश्व से मिटाने की खातिर, निरंतर कड़ा संघर्ष सहा।

वे बलिदानी क्या सोचेंगे ? जब हमको लड़ता- भिड़ता देखेंगे,
‘बेकार हुई सब मेहनत हमारी’, हम पर तो लानत ही फेंकेंगे।

राष्ट्र बड़ा है स्वार्थ से पगलों, कभी कुछ तो खुद पे शर्म करो,
सत्ता के महल की नीव में यारों, ईमान-धर्म की कांक्रीट भरो॥

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