सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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द्रुमदल शोभित बसंती,
हवा में डोल-डोल कुछ
बोल रही अपने-आपसे,
कुछ खोल-खोल।
अमरई मंजरी मोहक,
सुगंध में बखुलाई
नवोलित कोमल पत्ते,
परंग और तो और
मादक महुअन की खिल्ली,
अति मधुरम फाग की
फगुनाहट से मदमाती,
शुभीश सुगंध बिखेर-निखेर।
प्रीतम की अलसाई निशा चाँदनी,
निद्रा से भोरई वन-उपवन
काली कोयल कूक-कूक,
मारे तान सुरमई सुर
पुलक-पुलकित भई पर्यावरण,
कि सारी मनोरम हरियाली
बेशक प्रकृति की गोद में।
बसंती हवा के झोंकों ने,
नर्म गीली लाल गुलाबी
गाल होंठों को शुष्क-ऊष्म,
कर गई यूँ ही नई नवेली
गाँव की गौरीयन दुल्हनिया,
कुछ ना कहे बोल-बोल
लाल-पीली-नारंगी में खिले,
पुष्प तरुवर की सूखी डाली।
हरी-भरी हरियाली में पर्यावरण,
को सुहावने बनाते बूढ़े पेड़
गुलमोहर सदाबहार मोहगनी,
गूलर की प्रकृति के न्यौछावर में
और प्यारी-प्यारी नन्हीं छोटी,
बड़ी चम्पा चमेली गुलदैदी के
पौधे निराले मनभावनवाले,
बगियन में खिले राजभवन के
शोभा बढ़ाते दुखित मन चितवन,
को आनंद विभोरित कर सभी
देव-देवियों के पवित्र पूजा रूप।
अढ़ौल गेंदा हरसिंगार कनैल पुष्प को,
अपने में समेटे स्वर्गिक
सुखद सपनों संग उर्वशी को,
रिझाते झनक झंकृत पायल
के मधुरिम प्रीत परिणय में।
छटा को बिखेरे अपने सौन्दर्य से,
बसंती मनोरम में कुछ बोल-बोल॥
परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।