कुल पृष्ठ दर्शन : 143

You are currently viewing बहती नदी-सा जीवन था विशुद्धानंद का

बहती नदी-सा जीवन था विशुद्धानंद का

लोकार्पण-गोष्ठी…

पटना (बिहार)।

अद्भुत प्रतिभा के रंगकर्मी डॉ. चतुर्भुज एक महान नाटककार ही नहीं, काव्य-कल्पनाओं से समृद्ध एक महान दार्शनिक चिंतक भी थे। स्मृतियों की धूल में हमने एक नायाब हीरे को खो दिया है। ‘एक नदी मेरा जीवन’ लिखने वाले मर्मस्पर्शी कवि विशुद्धानंद का संपूर्ण जीवन पर्वत की घाटियों से होकर अनेक वन, प्रांतों और पथरीली भूमि से गुजरती बहती नदी-सा ही था।
यह बात बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-सह-सम्मान समारोह व कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कही। डॉ. सुलभ ने कहा कि विशुद्धा जी ने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य और संस्कृति कर्म को दिया। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि डॉ. संजय पंकज को ‘कवि विशुद्धानंद स्मृति सम्मान’ से अलंकृत किया गया। विशुद्धानंद जी द्वारा स्थापित सांस्कृतिक संस्था ‘आनन्दाश्रम’ के सौजन्य से डॉ. पंकज को सम्मान राशि और स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया गया। कवि को श्रद्धा तर्पण के रूप में आनंद आश्रम प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘विशुद्धानंद-स्मृति ग्रंथ’ का लोकार्पण भी किया गया।
इस दौरान आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ कवि विशुद्धानन्द के पुत्र प्रवीर कुमार ने वाणी-वंदना से किया। स्व. विशुद्धानंद के कवि-पुत्र प्रणव आनन्द, वरिष्ठ कवि मधुरेश नारायण, गीतकार ब्रह्मानन्द पाण्डेय, कवि सिद्धेश्वर, रूबी भूषण, लता प्रासर आदि ने भी रचनाओं का पाठ किया। मंच संचालन कुमार अनुपम ने किया। धन्यवाद ज्ञापन बाँके बिहारी साव ने दिया।

Leave a Reply