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बारिशों का मौसम

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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रिम-झिम बरसो कारे बदरा तन-मन झुलसा जाए,
तुम बिन कौन यहाँ मेरा जो आकर प्यास बुझाए।

इक तो ये बारिश का मौसम,पास पिया ना मेरे,
ये बारिश की बूँदें भी तन मन को आ कर घेरे।

बागों में फिर झूले डल गए सखियाँ झूले सारी,
एक अकेली बैठी ताकूँ,मैं बिरहा की मारी।

ओ कागा लेजा संदेशा साजन को पहुँचा दे,
दूर देश में पिया बसे हैं,खैर-खबर तू ला दे।

काली-काली घटा घिरी बिजुरी की चमक डराए,
मूसलधार बरस रही बदली,गोरी डर-डर जाए।

भर गये ताल-तलैया सारे,प्यास बुझी धरती की,
मैं प्यासी की प्यासी,छाती धड़क रही डरती की।

सावन के महीने की बारिश मन में हूक उठाये,
जुग बीते साजन नहिं आये,उनकी याद सताये।

सावन में आने को कह गये अब तक तो ना आये,
सब श्रृँगार पड़ गये फीके जिया मेरा घबराये।

कलियाँ चटकी फूल खिले हैं कोयल कूक सुनाये,
बैरी पपीहा कातर स्वर में पिहू-पिहू बस गाये।

सखी सहेली करे ठिठोली,नाम पिया का लेकर,
करें कलेजा छलनी हँसती हैं चुटकी ले-लेकर।

सज सोलह श्रृँगार खड़ी साजन की राह निहारूँ,
हृदय लगा लो आकर साजन,तन-मन तुम पे वारूँ।

पँख लगा उड़ आओ साजन,सजनी तुम्हें बुलाये,
बिना चन्द्रमुख देखे ही ये जान निकल ना जाये॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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