राधा गोयल
नई दिल्ली
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खाली जगह में निरंतर कमी होने का कारण है कि शहर के आस-पास जो जल निकाय है, उन पर या तो अतिक्रमण हो गया है या उनमें इतनी ज्यादा गाद जमा हो गई है कि जितनी बारिश होती है, उसको समाहित करने के लिए उनमें जगह ही नहीं बचती और वह पानी निकासी पानी के तौर पर वापस शहरों में घुसता है।
पहले जो पानी खाली जगह से होते हुए जमीन में चला जाता था, वह अब नहीं जा रहा। बढ़ते कांक्रीटकरण से भी इस समस्या में इजाफा हो रहा है।
बारिश के पानी की निकासी के लिए लगभग हर बड़े शहर में बरसाती नाले बने हुए हैं। शुरू में यह ठीक रहते हैं, लेकिन बाद में उनमें मिट्टी भर जाती है। दूसरी समस्या यह है कि उन्हीं लाइनों से सीवेज की लाइनें जोड़ दी जाती हैं। जब तेज बारिश होगी तो उस समय भी स्टार्म वाटर ड्रेन से पानी या तो घरों की सीवर लाइन में आएगा या गलियों-सड़कों पर। अगर ५-७ इंच बारिश हो गई तो शहरों को तालाब बनते देर नहीं लगती।
जापान में सुरंगों और टैंकों की मदद से बाढ़ प्रबंधन किया जाता है। इन्हें बाढ़ सुरंग (फ्लड टनल्स) के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ ३२० फुट लंबे और बड़े टैंक बनाए गए हैं। टोक्यो में जब भी बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न होती है तो इन सुरंगों से सारा पानी इन टैंकों में जाता है। जब यह पानी टैंकों में भर जाता है तो ४ बड़ी टर्बाइन इस पानी को नदी में ले जाने में मदद करती हैं।
हम सिंगापोर घूमने गए हुए थे। एक दिन शॉपिंग सेंटर जाना था।
शॉपिंग सेंटर की हर पट्टी के दोनों ओर किनारे पर शौचालय बने हुए थे। ७ मंजिला शाॅपिंग सेंटर था। १ ही फ्लोर पर कम से कम २० शौचालय तो अवश्य होंगे। अंदर टॉयलेट में टॉयलेट पेपर था और फ्लश करने के लिए भी पानी था, लेकिन साफ करने के लिए पानी नहीं था। वाशबेसिन पर हाथ धोने के लिए भी पानी नहीं था। इसका तात्पर्य है कि उन्होंने कोई तो ऐसा सिस्टम बनाया हुआ होगा, कि जिस पानी को फ्लश के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, उसको पुनः उपचार करने पर जो खर्चा आता है, वह तो बच ही रहा था। पानी की बचत भी हो सके, ऐसा सिस्टम बनाया हुआ था। सोचो, यदि कहीं फ्लश करने का भी पानी न हो तो शौचालय की क्या हालत होगी ?
ऐसे ही मैंने दुबई में देखा। दुबई कहने को तो रेगिस्तानी इलाका है, लेकिन वहाँ उन्होंने रेगिस्तान को नखलिस्तान बना दिया है। जगह-जगह पर बड़े-बड़े बाँस बीच में से आधे चीर कर उनमें छेद करके खेतों में बिछाए हुए हैं। उनके द्वारा टॉयलेट का पानी खेत में पहुँच जाता है और वहाँ हर समय हरियाली रहती है।
हमारे देश के मंत्री अनेक बार घूमने के बहाने विदेश यात्राएँ करते ही रहते हैं। उन्होंने भी यह सब देखा होगा, तो अपने देश में ऐसी योजनाएँ क्यों नहीं बनाई जातीं, जिससे बाढ़ आने पर उससे बचा जा सके और सूखाग्रस्त इलाकों में पानी की आपूर्ति हो सके। राहत कार्यों या मुआवजा देने में जो खर्च होता है, शायद उससे कम पैसों में गाँव व शहरों की समस्याएँ हल हो सकती हैं, और बाढ़ एवं सूखे की समस्या से निपटा जा सकता है। लोगों की अनमोल जिन्दगी और बड़ी मेहनत से बसाई गृहस्थी उजड़ने से बच सकती है।