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बाल विवाह-कुप्रथा

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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बाल विवाह एक कुप्रथा
पार की अब वो स्पर्धा,
मध्य मार्ग छोड़ आगे बढ़े
चली बढ़ौती में ब्याह प्रथा।

तब भी थी वो एक व्यथा
अब भी है ये एक व्यथा,
वो भी थी एक कुप्रथा
ये भी है एक कुप्रथा।

विलासिता की वासना मन
खुद में पूर्ण की चाहना बन,
बढ़ौती में ब्याह की व्यथा
चली पढ़े-लिखों की कुप्रथा।

खेल रहे सब प्रकृति से
देह की ईश्वरीय आकृति से,
संतुलन का देह नाम नहीं
बाद गहराती तब बड़ी व्यथा।

खो देगी अगली पीढ़ी तब
दादा-दादी का भी सब अर्थ
कृत्रिम गर्भाधान होंगे पालक
वृद्धावस्था में सब बेअर्थ।

बाल विवाह हो या बढ़ौती,
प्रकृति खिलवाड़ बड़ी व्यथा।
मत करो विलासिता में स्पर्धा
संतुलन जग जीवन का अर्था॥

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