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बाल साहित्य लिखा और पढ़ा जाना बहुत आवश्यक-‘नीहार’

विचार-विमर्श…

नीदरलैंड।

बच्चों के कोमल मन को ध्यान में रख देश-साहित्य और संस्कृति को माध्यम बना कर बच्चों के लिए हम जो साहित्य लिखते हैं, उसी को बाल साहित्य माना जाता है। शरारत व शिकायत बच्चों और बचपन के लिए बहुत आवश्यक है। बाल साहित्य को विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में पढ़ाना चाहिए, ताकि वह अच्छे अभिभावक बनें। यदि पुस्तक का विषय बालकों की रूचि के अनुसार नहीं है तो फिर उसका बाल साहित्य में कोई औचित्य नहीं रह जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी संगठन (नीदरलैंड) द्वारा बाल साहित्य कार्यक्रम की मासिक श्रृंखला में ‘बाल साहित्य के विविध आयाम’ विषय पर तरंग विचार-विमर्श के कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारत के वरिष्ठ बाल साहित्यकार, समीक्षक व दिल्ली में प्रवक्ता रूप में कार्यरत नरेन्द्र सिंह ‘नीहार’ ने वैश्विक दर्शकों व सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए इन विचारों से अपनी बात को अभिव्यक्त किया।
नीदरलैंड से कार्यक्रम की समन्वयक व प्रस्तुतकर्ता डॉ. ऋतु शर्मा ‘नंनन पांडे’ ने बाल साहित्य की भूमिका बताते हुए संचालन संभाला। विषय प्रवर्तन के रूप में समीक्षक व आलोचक सूर्यकान्त शर्मा ने बाल साहित्य के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि, टेलीविजन पर बहुत अधिक बच्चों के चैनल आ गए हैं, इसलिए हमें बाल साहित्य पर और अधिक ध्यान देना होगा। सरकार को इसके लिए पुस्तक नीति बनानी चाहिए। बाल साहित्य और साहित्यकारों को ऐसा मंच मिलना चाहिए, जहाँ वह अपनी बात कह सकें। विशिष्ट अतिथि के रूप में उत्तराखंड से वरिष्ठ बाल साहित्यकार मोहन जोशी गरूड़ ने कहा कि, बाल साहित्य एक महत्वपूर्ण विषय है, जो जाने-अनजाने में कहीं छिप जाता है। देश-विदेश में बाल साहित्य की लोक कथाओं, कहानियों, लेख निबंध, मानवीय मूल्यों पर आधारित साहित्य गीतों, लोरियाँ, कविताओं का ख़ज़ाना बिखरा पड़ा हैं। यदि हम भारत में इस ख़ज़ाने को पुस्तकों के रूप में समाहित कर सकें तो यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्कृतियों, के आदान-प्रदान का बहुत सफल प्रयोग होगा। यह भी कहा कि, लेखकों को बाल लेखन में नवीनता लानी होगी।
कार्यक्रम में डॉ. पांडे ने मुख्य अतिथि मीना अरोड़ा को आमंत्रित करते हुए प्रश्न किया-“क्या अनुदित बाल साहित्य को मौलिक बाल साहित्य से कमतर आँका जाना चाहिए ?” उत्तर में मुख्य अतिथि श्रीमती अरोड़ा ने कहा कि, अन्य धाराओं की तरह बाल साहित्य
भी एक महत्वपूर्ण धारा है। यह आज के दौर की अनिवार्य आवश्यकता है। बाल साहित्य की ओर कम ध्यान दिया जा रहा है। यह दु:ख का विषय है कि, हमारे देश में अधिकतर बच्चों को
पाठ्य-पुस्तकों तक ही सीमित रखा जाता है। मेरी दृष्टि में बच्चों को कहानियों के साथ बाल कविताओं के माध्यम से बहुत-सा ऐसा ज्ञान देना चाहिए, जिससे उनको खाने-पीने, पढ़ने, जीवन जीने के सही तौर-तरीकों का बचपन से ही अभ्यास हो जाए।
मुख्य वक्ता के रूप में इंदौर से वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुनीता श्रीवास्तव ने “आज का बाल साहित्य बच्चों को सोशल मीडिया, इंटरनेट के जाल से मुक्त करने में किस तरह सहायक हो सकता है ?” प्रश्न का उत्तर देते कहा कि, हम आज बहुत आसानी से बच्चों पर दोषारोपण कर देते हैं कि, बच्चे सारा समय फोन में सोशल मीडिया या इंटरनेट पर समय बिताते हैं, पर क्या हम अपने बच्चों के लिए समय निकाल पाते हैं ? आज हम अपने बच्चों के लिए उनके साथ बैठने, बातें करने का समय ही नहीं निकाल पाते। आज के समय में यह आवश्यक है कि, माता-पिता स्वयं पढ़ने की आदत डालें। बच्चों को पुस्तकालय जाना सिखाएँ, उन्हें उपहार में पुस्तकें दें और साथ बैठ कर पढ़ें तो बच्चे अवश्य ही इंटरनेट के जाल से मुक्त हो सकेंगे।
पत्रकार सोनू जी ने भी अपनी बात रखी। कार्यक्रम में श्री शर्मा द्वारा डॉ. शर्मा से नीदरलैंड में बाल साहित्य के विषय में जानकारी देने के आग्रह पर नंनन पांडे ने बताया कि, नीदरलैंड में बाल साहित्य की सरकारी नीति है। पुस्तकों को आयु वर्गों में बाँटा गया है। हर घर में कम से कम १ या २ पुस्तकों की अलमारी आपको मिल जाएगी। माता-पिता बच्चों के सोने से पहले साथ बैठ कर कहानी पढ़ते हैं।
डॉ. शर्मा ने आभासी पटल से जुड़े बाल साहित्यकार डॉ. नागेश पाण्डेय ’संजय’, हेमन्त कुमार, प्रतिभा राज-हंस, रोचिका शर्मा, निर्मला जोशी आदि सहित सभी का धन्यवाद व्यक्त किया।