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भारत अब ‘झुककर व्यापार’ नहीं करेगा

ललित गर्ग

दिल्ली
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देश के अग्रणी कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि-क्रांति के जनक एम.एस. स्वामीनाथन के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए ललकारभरे शब्दों में अमेरिकी टैरिफ पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। श्री मोदी ने कहा कि भारत किसानों के हितों से समझौता नहीं करेगा। ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगाए गए टैरिफ को भारत ने अनुचित एवं दुर्भावनापूर्ण बताया है। भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए बाजार खोलने के दबाव में कभी नहीं आएगा, क्योंकि भारत के लिए यह एक राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा है। नरेंद्र मोदी ने जो कहा, वो नए भारत, सशक्त भारत की एक स्पष्ट नीति का घोषणा-पत्र है, भारत की नई कृषि रणनीति, आत्मनिर्भरता की भावना और अमेरिकी टैरिफ की दादागिरी को खुली चुनौती है। भारत अब पीछे हटने वाला नहीं है और दुनिया की कोई भी ताकत उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकती।
प्रधानमंत्री ने ५० फीसदी अमेरिकी टैरिफ पर पहली बार प्रतिक्रिया दी, और अमेरिका या डॉनल्ड ट्रम्प का नाम लिए बगैर कहा कि किसानों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों के साथ भारत कभी समझौता नहीं करेगा।
यह विडम्बनापूर्ण है कि ट्रम्प बातें रूस की कर रहे हैं, लेकिन यह समझना आसान है कि उनकी निराशा के मूल में भारत के साथ अटका कृषि व्यापार सौदा भी है। वह चाहते हैं कि भारत अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए अपना बाजार खोले, लेकिन देश की बड़ी आबादी खेती पर आश्रित है और किसान आर्थिक रूप से सशक्त नहीं हैं। इसलिए वे अनुदानित अमेरिकी उत्पादों से होड़ नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री ने भारत का यही पक्ष एवं किसानों की चिन्ता को रखा है, लेकिन ट्रम्प इस चिंता को शायद ही समझें, क्योंकि अब ऐसा लग रहा है कि अपनी हर नाकामी का ठीकरा फोड़ने के लिए उन्हें कोई देश चाहिए। अमेरिका में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी का दबाव व यूक्रेन युद्ध न रुकवा पाने की हताशा ट्रम्प के फैसलों में बौखलाहट के रूप में झलक रही है। पहले उन्होंने चीन पर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन जब वहाँ से ‘रेयर अर्थ मिनरल्स’ के रूप में झटका लगा, तो भारत और रूस से अपनी बात मनवाना चाहते हैं।
हाल ही में अमेरिका द्वारा भारतीय कृषि उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने की घोषणा को प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल अनुचित और एकतरफा करार दिया, बल्कि स्पष्ट कर दिया कि भारत अब वैश्विक मंच पर दबाव में आने वाला नहीं है। अमेरिका की यह टैरिफ नीति, डब्ल्यूटीओ के सिद्धांतों के विरुद्ध और विकासशील देशों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार का प्रतीक है। भारत पर विशेषकर चावल, गेहूं, दलहन और मसालों के निर्यात में टैरिफ लगाना सीधे-सीधे भारतीय किसानों की आय पर प्रहार है। ऐसे समय में जब भारत कृषि निर्यात को बढ़ावा देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बना रहा है, अमेरिका की यह नीति दादागिरीपूर्ण व्यापारवाद का उदाहरण है, पर भारत ऐसी चुनौतियों के सामने झुकने वाला नहीं है।
भारत अब केवल अमेरिका या यूरोप पर निर्भर नहीं रहना चाहता। अफ्रीका, खाड़ी देशों, दक्षिण एशिया और पूर्वी एशियाई देशों के साथ द्विपक्षीय कृषि व्यापार समझौते तेजी से किए जा रहे हैं। स्थानीय उत्पादन का प्रोत्साहन, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ के तहत कृषि प्रसंस्करण इकाइयों को बल दिया जा रहा है, जिससे निर्यात योग्य उत्पादों का मूल्यवर्धन हो सके। टैरिफ के जवाब में भारत टैरिफ की राह पर बढ़ते हुए यदि आवश्यकता पड़ी, तो प्रतिस्पर्धी टैरिफ नीति के तहत अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने से नहीं हिचकिचाएगा। भारत डब्ल्यूटीओ और जी-२० आदि मंचों पर आक्रामक कूटनीति का सहारा लेकर अब विकासशील देशों की आवाज बनकर अमेरिका की एकतरफा नीतियों का जवाब दे रहा है।
देश को धीरे-धीरे समझ आने लगा है कि भारतीय कृषि व डेयरी क्षेत्र में अमेरिकी उत्पाद खपाने के लिए ही डोनाल्ड ट्रम्प टैरिफ का आंतक फैला रहे हैं। यही वजह है कि पहले संयम दिखाने के बाद भारत ने निरंकुश ट्रम्प सरकार को चेता दिया है कि भारतीय किसानों व दुग्ध उत्पादकों के हितों की बलि नहीं दी जा सकती। हमारे लिए यह देश की कृषि व डेरी उद्योग से जुड़ी बड़ी आबादी के जीवन-यापन का भी प्रश्न है।
बहरहाल, यह तय हो गया है कि भारत वाशिंगटन के उन मंसूबों पर पानी फेरने के लिए खड़ा हो गया है, जिनके तहत अमेरिका मक्का, सोयाबीन, सेब, बादाम और इथेनॉल जैसे उत्पादों से कम टैरिफ के साथ भारत के बाजार को पाटना चाहता है। निस्संदेह, भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले ३ प्रमुख क्षेत्रों (कृषि, डेरी फार्मिंग और मत्स्य पालन) से जुड़े करोड़ों लोगों की अजीविका की रक्षा करने के लिए प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता सराहनीय है।
एम.एस. स्वामीनाथन का नाम आते ही भारतीय कृषि का वह स्वर्णिम अध्याय सामने आता है, जब देश अन्न के लिए विदेशों पर आश्रित था और अकाल एक आम त्रासदी हुआ करती थी। श्री स्वामीनाथन ने उर्वरकों और सिंचाई तकनीक का ऐसा संगम किया जिसने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बना दिया। मोदी इसी नीति को आगे बढ़ाते हुए न केवल किसानों के हितों के साध रहे हैं, बल्कि भारतीय कृषि को नए भारत का आधार बनाने के लिए संकल्पबद्ध हैं। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि भारतीय राजनीति में किसान उत्पादक व उपभोक्ता से इतर बड़ा राजनीतिक घटक भी है। ऐसे में जाहिर है कि प्रधानमंत्री कृषक समुदाय को किसी भी कीमत पर नाराज नहीं करना चाहेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी का जोर अब ‘अन्नदाता को ऊर्जादाता’ बनाने पर है। इसके लिए कृषि के ३ प्रमुख मोर्चों पर काम हो रहा है-न्यूनतम समर्थन मूल्य को अधिक न्यायसंगत और पारदर्शी बनाना, कृषि निर्यात को ५० बिलियन डॉलर से ऊपर ले जाना एवं स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को चरणबद्ध लागू करना, जिससे किसानों को लागत से ५० प्रतिशत अधिक लाभ मिल सके।
सही मायनों में भारतीय कृषि में उन आमूल-चूल परिवर्तनों की आवश्यकता है, जो न केवल किसान की आय बढ़ाएं, बल्कि कृषि उत्पादों को विश्व बाजार की चुनौतियों से मुकाबला करने में भी सक्षम बनाएं। ऐसे में हरित क्रांति के जनक एम.एस. स्वामीनाथन को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम हर हालात में मेहनतकश अन्नदाता को पूरे दिल से समर्थन दें। भारत अब ‘झुककर व्यापार’ नहीं करेगा, बल्कि ‘सम्मान के साथ साझेदारी’ करेगा। अमेरिका जैसे देशों को यह समझना होगा कि भारतीय किसान अब केवल हल चलाने वाला नहीं, बल्कि वैश्विक बाजार का खिलाड़ी है।