क्षितिज जैन
जयपुर(राजस्थान)
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उठ भारत! हो जाग्रत,और किरीट सम्हाल अपना,
जो झुका सदियों से,उठा सम्मान से भाल अपना।
जो हुआ विगत उसकी परत को मन से त्याग दे,
गौरव की वीणा में विजय का पुन: तू अब राग दे।
झककोर अपने-आपको,जगा अपने संचित बल को,
द्युति ले आँखों में,और हृदय खंड में ला अनल को।
निश्चय कर ले ऐ स्वदेश! आज तू यह मन में,
पुन: पाना वही वैभव,कोविदों ने गाया जो वंदन में।
उठ भारत! हो जाग्रत,और किरीट सम्हाल अपना,
त्रस्त कर दे शत्रुओं को,दिखा रूप विकराल अपना।
तिरोहन काल में हमारे,जग ने किया बहुत अपमान है,
ललकार कर तू दे उन्हें बता,तू वही भारत महान है।
विश्वगुरु का वही सिंहासन,आज समक्ष विराजमान है,
पुरातन कीर्ति व श्री से आलोकित होता लक्ष्मीवान है।
इस विश्वगुरु के सिंहासन पर,जता दे अधिकार अपना,
शक्ति से आभामान तेजोमयी रूप कर साकार अपना।
उठ भारत! हो जाग्रत,और किरीट सम्हाल अपना,
प्रारम्भ कर बन चक्रवर्ती,विजय चक्र विशाल अपना।।
परिचय-क्षितिज जैन का निवास जयपुर(राजस्थान)में है। जन्म तारीख १५ फरवरी २००३ एवं जन्म स्थान- जयपुर है। स्थायी पता भी यही है। भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखते हैं। राजस्थान वासी श्री जैन फिलहाल कक्षा ग्यारहवीं में अध्ययनरत हैं कार्यक्षेत्र-विद्यार्थी का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत धार्मिक आयोजनों में सक्रियता से भाग लेने के साथ ही कार्यक्रमों का आयोजन तथा विद्यालय की ओर से अनेक गतिविधियों में भाग लेते हैं। लेखन विधा-कविता,लेख और उपन्यास है। प्रकाशन के अंतर्गत ‘जीवन पथ’ एवं ‘क्षितिजारूण’ २ पुस्तकें प्रकाशित हैं। दैनिक अखबारों में कविताओं का प्रकाशन हो चुका है तो ‘कौटिल्य’ उपन्यास भी प्रकाशित है। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि- आकाशवाणी(माउंट आबू) एवं एक साप्ताहिक पत्रिका में भेंट वार्ता प्रसारित होना है। क्षितिज जैन की लेखनी का उद्देश्य-भारतीय संस्कृति का पुनरूत्थान,भारत की कीर्ति एवं गौरव को पुनर्स्थापित करना तथा जैन धर्म की सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-नरेंद्र कोहली,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। इनके लिए प्रेरणा पुंज- गांधीजी,स्वामी विवेकानंद,लोकमान्य तिलक एवं हुकुमचंद भारिल्ल हैं। इनकी विशेषज्ञता-हिन्दी-संस्कृत भाषा का और इतिहास व जैन दर्शन का ज्ञान है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपका विचार-हम सौभाग्यशाली हैं जो हमने भारत की पावन भूमि में जन्म लिया है। देश की सेवा करना सभी का कर्त्तव्य है। हिंदीभाषा भारत की शिराओं में रक्त के समान बहती है। भारत के प्राण हिन्दी में बसते हैं,हमें इसका प्रचार-प्रसार करना चाहिए।