दिल्ली
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अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत एवं उसके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की साख और सीख के कारण भारत दुनिया का सिरमौर बनने की दिशा में अग्रसर है। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में ३ देशों की यात्रा की और ३१ वैश्विक नेताओं व वैश्विक संगठनों के प्रमुखों के साथ मुलाकात की। मोदी की विदेश यात्राओं से विश्व में भारत का न सिर्फ सम्मान बढ़ रहा है, बल्कि दुनिया का हमारे देश के प्रति नजरिया भी बदल रहा है। भारत का हमेशा से मानना रहा है कि दुनिया के शीर्ष ताकतों को सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचना चाहिए। आर्थिक रूप से संपन्न देशों को छोटे-छोटे देशों के हितों का भी उतना ही ख्याल रखना होगा। प्रधानमंत्री के ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ का मंत्र इस बात की ओर ही संकेत है। भारत में वैश्विक विकास को फिर से पटरी पर लाने, युद्धमुक्त दुनिया बनाने, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और डिजिटल परिवर्तन जैसे वैश्विक चिंता के प्रमुख मुद्दों पर दुनिया की अगुवाई करने की क्षमता है। इस पहलू को अब दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियाँ भी स्वीकार करने लगी हैं। मोदी ने बार-बार कहा है भारत ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना से काम करता है, जिसमें छोटे-छोटे देशों के हितों को पूरा करने के लिए समान विकास और साझा भविष्य का संदेश भी निहित है, जो भारत की आशावादी एवं समतामूलक सोच को दर्शाता है।
भारत को स्वर्णिम भारत, अच्छा भारत, रामराज्य का भारत या दुनिया का सिरमौर इसलिए कहा जाता है कि यह वो देश है, जहाँ से दुनिया ने शून्य को जाना। खेल, पर्यटन और फिल्मों से जिसको पहचाना जाता है। अंतरिक्ष में पहुँच, तकनीकी प्रतिभाओं से विश्व ने भी भारत का लोहा माना है। भारत दुनिया को बाजार नहीं, एक परिवार मानता है। संतों के सान्निध्य में चलने वाली भारत की व्यवस्था पूरी दुनिया के लिए मार्गदर्शक है। मानव सभ्यता के ९५ प्रतिशत समय तक भारत दुनिया को खनिज, मसाले और धातुओं के साथ ही धर्म, गणित एवं खगोलशास्त्र की अवधारणाएं देता रहा। जब सारी दुनिया भटकती है, तब भारत उसका मार्ग प्रशस्त करता है। भारत टकराव और संघर्ष को मानवता के लिए खतरा मानता है। भारत ने अपनी विदेश नीति के जरिए हमेशा ही ये संदेश दिया है कि आज दुनिया जलवायु परिवर्तन, गरीबी, आतंकवाद, युद्ध और महामारी जैसी जिन सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है, उनका समाधान आपस में लड़कर नहीं, बल्कि मिलकर काम करके ही निकाला जा सकता है।
आज दुनिया में ऐसी ही संवेदनशील अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण की चर्चा हो रही है, जहां समाज कल्याण एवं सकल घरेलू उत्पाद विकास दोनों का सह-अस्तित्व हो और नागरिकों की प्रसन्नता सर्वाेपरि हो। भारत ऐसी ही अर्थव्यवस्था यानी संवेदनशील वैभव के सदुपयोग को खुशहाल जीवन और दीर्घकालिक आत्मनिर्भर समाज का आधार मानते हुए आगे बढ़ रहा हैं। भारतीय सभ्यता सदा से धन और दान दोनों को सर्वाेच्च मानती है। हमारे ऋषियों-मनीषियों ने वाकपटुता, सहायता करने की तत्परता, शत्रुओं से निपटने की बुद्धिमत्ता, स्मृति, कौशल, नैतिकता एवं राजनीति का ज्ञान आदि गुणों को सफल नेतृत्व का आधार बताया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन्हीं गुणों के बल पर भारत को दुनिया में अव्वल स्थान पर पहुंचाया है।
भारत के पास सबसे मजबूत लोकतंत्र है, विविधता है, स्वदेशी एवं समावेश सोच, आदर्श जीवन-शैली, वैश्विक सोच है और दुनिया इन्हीं में अपनी सभी चुनौतियों का समाधान देख रही है।
आज अमेरिकी अपनी गिरती साख को लेकर चिन्तित हैं। यूरोपीय संस्कृति ऐसी रही है, जिसमें उन वस्तुओं पर भी पैसा बहाया गया, जिनकी उन्हें कभी जरूरत ही नहीं थी। चीन ने कारोबार और नीतियों का ऐसा रास्ता अपनाया, जिसमें कोई नैतिकता नहीं। रूस अपने शत्रु को आँकने में गलती कर गया और एक अंतहीन से युद्ध में उलझकर रह गया। इस उथल-पुथल के बीच ऐसा लगता है कि केवल भारत ही ऐसी प्रमुख शक्ति है, जिसने ऐसा रास्ता चुना जो कूटनीतिक समझ और नैतिकता से भरा है। उसने एक स्थिर अर्थव्यवस्था की वैश्विक छवि के रूप में खुद को स्थापित किया है, जिसके साथ दुनिया व्यापार करना चाहती है। ये सब इसी कारण संभव हुआ, क्योंकि हम अपनी संस्कृति से जुड़े हैं, हमारा नेतृत्व संस्कृति से जुड़ा एक महान् कर्मयोद्धा कर रहा है।
दुनिया पिछले हजारों सालों से सुखों के लिए दौड़ रही है लेकिन इस दौड़ में हार चुकी है। अब उसकी नजर भारत पर है। देश को अपनी सारी शक्ति एकजुट करनी होगी। सारी दुनिया में कट्टरपंथ और उदारता के बीच लड़ाई चल रही है। कपट और सरलता के बीच संघर्ष चल रहा है। देश को अपने मूल्यों को स्थापित करने के लिए सेनापति की भूमिका निभानी होगी और उसके लिए उसकी तैयारी भी है।
वर्तमान में भारत आर्थिक, सामरिक, वैज्ञानिक तथा ज्ञान के क्षेत्र में विश्व का सिरमौर बन रहा है, यह अच्छा संकेत है। अन्य क्षेत्रों के साथ भारत सौर ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर है। सौर ऊर्जा उत्पादन में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। इसलिए सारा संसार भारत की ओर बड़ी आशा और विश्वास के साथ देख रहा है, परन्तु अनेक विशेषताओं एवं विलक्षणताओं के बीच कुछ विसंगतियां एवं विषमताएं भी हैं। भारत की अस्मिता का प्रतीक मातृशक्ति की सर्वत्र अवमानना की जा रही है। चरित्रहीनता, भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता से जूझता हुआ हमारा भारतीय समाज भोगवादी संस्कृति का आदी हो चुका है। अपने देश में भारत के हित में विचार करनेवाले, समाज की उन्नति के संबंध में चिंतन करनेवाले लोगों की कमी नहीं है। फिर भी आज देश की व्यवस्था में राष्ट्रभक्तों का अभाव दिखता है। यही कारण है कि संपूर्ण देश में एक असंतोष की भावना दिखाई देती है। सरकारी यंत्रणाओं के प्रति जनमानस का विश्वास प्रायः लुप्त होता जा रहा है।
शिक्षा के क्षेत्र में नए परचम फहराने वाले युवाओं, घर को संस्कारों से संवर्धित करनेवाली नारीशक्ति, संपूर्ण भारत के जीवन को पोषित करनेवाले हमारे अन्नदाता किसान भाइयों तथा खेतों, कारखानों तथा सर्वत्र मजदूरी करनेवाले श्रमिकों, वन-संस्कृति का जतन करनेवाले वनवासी भगिनी-बंधुओं के आत्मविश्वास, लगन तथा परिश्रम के जागरण से भारत दुनिया में अव्वल होने की दिशा में अग्रसर है। शिक्षित, प्रबुद्ध तथा समृद्ध समाज को दीन-दलितों, अशिक्षितों तथा असहाय लोगों के उत्थान के लिए आगे आना होगा।
अंतर्राष्ट्रीय संगठन डेलायट ने अपनी रिपोर्ट में वर्ष २०३० तक भारत के चीन और अमेरिका जैसी विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़कर दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता बाजार के रूप में उभर कर सामने आने की आशा व्यक्त की है। हमें राष्ट्र को आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथा सामरिक दृष्टि से सबल बनाना होगा। भारत को दुनिया का सिरमौर देखने की कामना करने वाले लोगों से अपेक्षा है कि वे जागें, कुछ नया और अनूठा करें। आने वाली पीढ़ियाँ तुम्हें निहार रही हैं। मानव चिंतन के शीर्ष पर रहने वाला भारतीय समाज ३०० वर्ष के अंतराल के बाद अपने ऐतिहासिक गौरव को फिर से पाने के पथ पर अग्रसर है। मध्यकाल में राह भटकने के बाद आज देश की युवा पीढ़ी एक ऐसे भारत में आगे बढ़ रही है, जो अवसर, संस्कृति और प्रगति का देश है।