हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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विविधताओं के भारत में फिर एक बार हिन्दी की बिंदी पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले लट्ठमार लोग निकल रहे हैं। इसका कितना कष्ट व कितना संघर्ष और देखने को मिलेगा ?
‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का बैनर लेकर ख्यालीराम जी चल रहे थे। पदयात्रा है, कि यह कोई सोशल मिशन भैय्या जी ? अरे साहब हम तो समय के हर पहलू को भांप लेते हैं, हवा कभी धीरे-धीरे चलती है, तो कभी आँधियों के घेरे में विशाल बवंडर उठते हैं। हम लोगों ने चाइना के लोगों का आलाप भी सुना है, जब वह ‘भाई-भाई’ के नारे लगाते थे और पीठ पीछे ना जाने क्या-क्या करते थे ?, लेकिन हमें अपने ही देश में तख्तियाँ लेकर निकल-पड़ना रहा है। क्यों ख्यालीराम जी, आप इतने हताश व निराश क्यों लग रहे हो ?
अरे भाई क्या बताऊं, अब तो हर एक राज्य में अपनी-अपनी ढपली लेकर अपनी ही भाषा का बोल-बाला करने में लोग लगे हुए हैं। हमारी बिंदी-हिन्दी इतनी कमजोर हो गई है, कि उसकी आवश्यकता ही नहीं लगती है। हर कोई उसके प्रति अपनी अभिव्यक्ति पर सवालिया निशान लगा देते हैं। नहीं श्रीमान जी, हमारी राष्ट्रीय पहचान और हमारा अभिमान इतना कमजोर नहीं हो सकता है। क्यों ख्यालीराम जी, वह इसलिए कि समभाषी राज्यों में कुछ लोग बगावत का झंडा लेकर अपने-आप को चकाचक और साफ समझ रहे हैं। किसी के मिलावटी दिशा-निर्देश में मस्का लगाने के दिल फेंक अंदाज से वहाँ खुद अपने-आपमें बहुत छोटे हो गए हैं। भैय्या जी जिस प्रकार कतरन होती है, जिसे लेकर मूषक राज़ टेलर के पास जाता है, और उन चिंदी व कतरनों से अपने लिए वस्त्र सिलाई की मांग करता है। वह इतना नहीं जानता कि इन कतरनों से कुछ भी नहीं होगा। फिर भी वह ढपली लेकर निकल रहे होता है चाहे कोई सुने या ना सुने ? ख्यालीराम जी, हिन्दी भाषा पर ऐसे कटाक्ष पर आप क्या सोच रहे हो ? क्या सोचें, जब उसे राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त हो चुका है, तो फिर बेकार की लड़ाई या आग लगाने वाले तो सिर्फ अपने मतदाता व अपना-अपना देख रहे हैं। ऐसी ही वैचारिकता से नासमझ लोग आवाज बुलंद करने में लगे हैं। तभी हम लोगों को समय-समय पर इस तरह का विलाप करने में जनमानस आगे दिख जाते हैं। आखिर ऐसे विकल्प बार-बार क्यों होते हैं ? इस पर कभी कोई विचार क्यों नहीं करते हैं ? अरे भाई, यहाँ भांति-भांति के लोग सबकी अपनी-अपनी सोच है। कोई उन्नीसवां है, तो कोई बीसा फिर सब एक जैसे तो नहीं है, अलग-अलग ही हैं। फिर भी सच्चे मन से सोचें, तो हम हिन्द के निवासी, भाषा हिन्दी और हिन्दुस्तान हमारा देश, फिर काहे का यह क्लेश ? धर्म, जात-पात व भाषा सभी भिन्न जरूर है, पर हमारी एकता, समन्वय और आपसी सहयोग व मित्रता जब तक रहेगी, तब तक भाषा की इस प्रकार की हाथापाई की जरूरत हमारे देश में तो नहीं होने वाली है। भैय्या बिंदी जरूर लगेगी, गम नहीं होगा उसमें। अरे क्या बात करते हो ख्यालीराम जी, गम तो बहुत है दुनिया में।
अरे भाई, उस गम की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं तो चिपकने वाले गम या गोंद की बात कर रहा हूँ। अगर वह सही से लगा होगा, उसके अपने पक्ष के शुभचिंतक उसके पक्ष को मजबूती से थामे हुए हैं, तो हिन्दी की यह बिंदी कभी भी धराशाई नहीं हो सकती है।